उसका देश के लिए प्रेम था विवि अनुदान आयोग का रूपया लेकर वो देश भर में देश का आइडिया बेचता था बड़ा रसूखदार आदमजात था उसके भाई बंद इस नेक काम में मदद करते थे हवाई जहाज से आना जाना और देश प्रेम का ठोस काम। दो कहानी जो मंटो और स्वयप्रकाश ने लिखी थी से उसकी रोजी रोटी चलती थी पर दिल्ली में रहने से कुछ ही कहो अलग ही फर्क पडता है सो वहा रहना मजबूरी थी वरना देश के गांव की सेवा कैसे होती?(एनजीओ पुराण भाग ४६ समाप्त )
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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