ये तारों भरी शाम थी जब सारा मजमा उस पांच सितारा होटल में इकट्ठा था और देश की गरीबी पर बात हो रही थी, महंगी दारू के दौर के साथ समुद्री भोजन भी परोसा जा रहा था, अचानक एक बेबस गरीबी सा आदमी उस बैठक में घूस गया बस फिर क्या था लोगो ने क्या नहीं किया उसके साथ सारे लोग पिल पड़े उस पर और जब तक वो गया नहीं वहाँ से उन सब संभ्रांत लोगो ने खाने को छूआ नहीं गरीबी पर कार्यशाला मजेदार "ड्रिंक्स' के साथ समाप्त(एनजीओ पुराण भाग ३६ समाप्त)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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