ये देश की जाना मानी संस्था थी एक जमाने में बहुत काम करती थी, फिर राज्य के प्रगतिशील मुख्यमंत्री ने इनकी दूकान बंद करवा दी जबकि इसमे कई वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जुड़े थे पर जादू चला नहीं देर तक, खैर आजकल ये वामपंथी दूसरी दूकान चलाते है और देश भर में अपने जन-माल को सप्लाय करते है और मोटा रूपया लेकर कंसल्टेंसी करते है, "खुद को आबाद किया देश बर्बाद किया" कमला भसीन का एक पुराना गाना है(इति एनजीओ पुराण भाग २१ समाप्त)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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