पिछले
कई दिनों से मप्र के सरकारी अस्पतालों में जा रहा हूँ तो सरकारी अस्पतालों
पर गहरा विश्वास जम रहा है, डाक्टरों की मेहनत, काबिलियत योग्यता और जिस
तरह के माहौल में वे काम करते है उससे सर झुकाने को दिल करता है. खासकरके
सरकारी अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड बहुत अच्छे हो गये है और वहाँ जो
सुविधाएँ है वो किसी प्राईवेट अस्पताल से कम नहीं बल्कि NRC & SNCU का
जो शिशु मृत्यु दर कम करने में है वो अतुलनीय है.
जो लोग भी इसमे काम कर रहे है और शिद्दत से लगे है आमूल-चूल परिवर्तन करने
में उनकी मेहनत और जज्बे को सलाम .........इसमे भी बता दू कि सीहोर, सागर,
सतना के अस्पताल में जो जच्चा-बच्चा के लिए सुविधाएँ है, वो एक सरकारी सेट
अप में जमाने के लिए खून देना पड़ रहा है पर यहाँ की महिला डाक्टर, स्टाफ
नर्सेस, पैरा मेडिकल स्टाफ, सिविल सर्जन, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थय
अधिकारी, डीपीएम और NRHM का स्टाफ का जिस टीम भावना से काम कर रहा है वो
बेहद प्रशंसनीयऔर सराहनीय है. ये लोग दस से सोलह घंटें काम कर रहे है और
इसमे कोई इनका स्वार्थ नहीं है.
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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