ये सड़क कभी खत्म नहीं होती ना ही कोई खम्बा अपनी जगह से हिलता है बस सरकता है तो दर्द, पिघलता है तो दर्प, बुझता है तो एक दिया जो सुबह होने तक ही बमुश्किल जल पा रहा है आज, इन सडकों पर चलते चलते थकने का एहसास जोर पकडते जा रहा है सामने से तेज रोशनी के थपेड़े चले आ रहे है जिसमे कुछ नजर नहीं आ रहा, एक शव इस सडक पर से गुजरता है, शव के पीछे हुजूम में शोर नहीं है, शांति भी नहीं, एक खौफ है सबके चेहरों पर मौत का नंगा नाच देखने को अभिशप्त ये लोग चले जा रहे है सड़क पर और तेज रोशनी में धूल के गुबार उड़ते जा रहे है, एक बवंडर भी इधर से निकला है अभी-अभी सारी यादों को अपने साथ उड़ा ले गया है कह के गया है कि अब सब साफ़ हो जाएगा क्योकि जब स्मृतियाँ नहीं होंगी तो दुःख नहीं सालेगा किसी को और कोई किसी की मौत के सामने खौफजदा नहीं होगा. यह तेज धूप और तेज रोशनी के बीच का समय है, यह साँसों के बीच आरोह-अवरोह को पछाडते हुए एक भभकते हुए सूर्ख गोले में समां जाने का समय है, यह अपनी टींस और दर्द को भूलकर मोह से बिछडने का समय है, यह अपने से अपने को छोड़कर अपने में मिल जाने का समय है, यह वह समय है जो काल से परे होकर काल से भेड़े लेने का समय है ताकि एक जद्दोजहद से मुक्ति मिल सके, यह समय अपनों से डाह, जलन, ईर्ष्या, संताप और अवसाद भुलाकर अपनी रूह में खोकर अपने प्रारब्ध को पाने का समय है......बस रंगों की धमाचौकड़ी में अपने पी के रंग में खो जाने का समय है और अपने दरवेश से मुहब्बत करने और उसके लिए पूर्ण समर्पण का समय है .........यह सड़क अब वैराग्य भूमि पर जा रही है, दूर से आ रही आवाजों में गोधुली की इस बेला पर गायों का रम्भाना और घंटियों की मधुर ताल सुनाई दे रही है ऐसा प्रतीत हो रहा है.आओ सब सिमट आओ हम यहाँ से ही अपना नया सफर शुरू करेंगे.......
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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