मप्र की राजधानी से बिलकुल सटे जिले के एक सरकारी अस्पताल में बड़ी विचित्र बातें देखने को मिली-दो केस, दो लंबी बहसें और दोनों बार नाकामयाब और लगभग अपमानित महसूस किया मैंने और मेरे एक साथी ने साथ ही बरसों से इमानदारी से काम कर रही तीन वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञों ने.
पहले केस में एक आदमी डाक्टर से जिद कर रहा है कि खून का इंतजाम करवा दें बीबी ने हाल ही में पन्द्रहवें बच्ची को जन्म दिया है ग्यारह ज़िंदा है इनमे से एक की शादी हो चुकी है, चार मर गई जन्म के समय जो जमीन में गाड़ दिया. अब कहता है कि नासबदी नहीं करवाउंगा क्योकि जब तक लड़का नहीं होता मै क्यों करवाऊं? ऊपर से तर्क यह कि जनानी साली बारहों महीने बीमार पडी रहती है, घर का काम नहीं करती, पिछले सोलह बरसों से बीमार पडी है. अब इस डिलीवरी में खून कहाँ से लाये ?
दूसरा केस, वही सरकारी अस्पताल है आठ लडकियों के बाद नौवीं बार बीबी भर्ती है हीमोग्लोबिन लेवल 3.6 प्रति मिलीग्राम है, रिपोर्ट हमारे सामने है और सरकारी योजना के अनुसार उसकी बीबी को दो बोतल खून दिया जा चुका है अभी और तीन चार बोतलों की जरुरत है पर कहाँ से आएगा. नसबंदी नहीं करवाउंगा आषाड में देखूंगा, मजदूरी सौ रूपये मिलती है घर में दस पहले से ही खाने वाले है और अब यह आठवी डिलीवरी .......
सवाल यह है कि दोनों ही स्थितियों में महिला पीस रही है उसे सिर्फ एक बच्चे पैदा करने की मशीन बना रखा है और दोनों ही मर्द शहर के हाई-वे से लगे गाँव से आते है और बहुत जागरूक, समझदार और संवेदनशील है. बहस करने पर कहते है आप परिवार कल्याण की बात मत करो, जनसंख्या रोकने की बात मत करो, आप सब लोग जो बात करते हो - इस संसार में पैदा हो चुके हो. और कृपया ध्यान दें ये दोनों सज्जन हिन्दू है ऐसा ना हो कि आप मुसलमानों के सर तोहमत लगा दे इसलिए साफ़ लिख रहा हूँ यह बात कि ग्रामीण क्षेत्र के है और हिन्दू है.
इन दो महान केस के बहाने "महिला दिवस 8 मार्च 2013 की शुभकामनाएं सभी को और वो भी महिलाओं से ज्यादा पुरुषों को....
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