माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं....
सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन,
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ,
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं
कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम,
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं.......
-नक़्श लायलपुरी
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं....
सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन,
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ,
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं
कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम,
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं.......
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं....
सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन,
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ,
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं
कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम,
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं.......
-नक़्श लायलपुरी
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