मनोज ने कहा कि देवास से जब रंगोली की परम्परा खत्म हो रही है, तो यह हम जैसे कलाकारों की ड्यूटी है कि इस महान कला को ज़िंदा रखे............बस रंगोली एक शगुन है जो सुबह हर मराठी घर में बनाई जाती है, दूसरा यह मेरे लिए पेंटिंग के समां है पर जब रंगों को हाथ से पकड़ता हूँ तो सुखद अनुभूति होती है वह ब्रश से रंगों के साथ खेलने में मजा नहीं है.......अफजल साहब ने इसे शुरू किया राजकुमार चन्दन ने इसमे काम किया मै सिर्फ रान्गोलीबाज नहीं बनाना चाहता पर चाहता हूँ कि यह कला जो देवास की पहचान है ज़िंदा रहे........हालांकि इसमे असाध्य श्रम है आर्थिक दिक्कतें है पर ठीक है यही तो एक कलाकार का सरोकार होना चाहिए..........बहरहाल मनोज की बातें हमें आश्वस्त करती है कि कैसे हम अपनी परम्पराओं को बचा सकते है कैसे अपना काम करते हुए और ज्यादा बेहतर काम कर सकते है. जबरदस्त है भाई मनोज का काम इतना बारीक और महीन है कि यकी ही नहीं होता कि ये सब रंगोली से बने चित्र है.............देवास में अफजल साहब की परम्परा को जारी रखते हुए मनोज के ये चित्र आश्वस्त करते है कि अभी कला का संसार बहुत बड़ा वृहद और संभावना भरा है.
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