सतना
की खुरचन, पन्नीलाल चौक की चाट, सिरमोर चौराहे का आई सी एच, वीनस स्वीट्स,
ताजे फल, रेलवे स्कूल, रीवा रोड, भरहुत नगर, मुख्तियार गंज, हनुमान
चौक.........मेघा होटल और फ़िर कोठी रोड ........हाय कितनी यादें जुडी है इस
शहर से मै मजाक या गंभीरता में हमेशा कहता हूँ कि कभी इतने पाप करने के
बाद भी अगला जन्म मनुष्य योनी में मिला और अगर भगवान ने पूछा कि बेटा कहाँ
पैदा होना चाहोगे तो जरुर कहूँगा कि प्रभु इस बार
सतना में में ही सेट कर दो........इस शहर से मेरी सबसे अच्छी यादें और
भावनाएं जुडी है 1991-92 और फ़िर 2005-06.......ना जाने क्यों बघेली बहुत
मीठी बोली लगती है, "आई दादा बैठी, अपन पंचा के........या अरे हो गया
छोडिये का जुमला हरेक की जुबान पर और फ़िर पान खाने जाओ तो जो अदा से पान
पेश किया जाता है ..........कुल मिलाकर यह शहर बहुत अच्छा और बसने लायक है.
यह तुम्हारे लिए है, सुन रहे हो ना, कहाँ हो तुम.............
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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