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नियमित ना देख पाने का आज बड़ा दुःख हुआ जब मी मराठी नामक एक अखबार से
मालूम पड़ा कि मेरी मित्र साधना खोचे की माँ का देहांत हो गया सौ. कल्याणी
खोचे बेहद जागरूक महिला और ममतामयी माँ थी, शाम को साधना को फोन किया तो
बहुत बुरा लग रहा था. उनसे हमेशा मिलना होता था और हमेशा वो समाज में काम
करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती थी. साधना के पापा नर्मदा बाँध में चीफ
इंजिनियर थे पर आई के व्यवहार से कभी नहीं लगा
कि वे इतने बड़े पद वाले व्यक्ति की पत्नी है, हमेशा मुस्कुराती हुई वे
सबसे मिलती थी. साधना ने कल्याणी सामाजिक संस्था बनाई थी कठ्ठीवाडा
(आलीराजपुर) के कवछा गांव में, तो वे हमेशा हेरविग और साधना को कहती कि
गरीब लोगों के लिए काम करो, उन्हें जागरूक बनाओ और सबकी मदद करो. संस्था के
दस वर्ष पुरे होने पर देवी अहिल्या विवि, इंदौर के सभागृह में कार्यक्रम
रखा था तब मै उनसे मिला था और खूब लंबी बात की थी. जब उनके मंच पर सम्मान
का अवसर आया तो वे लजा गई और बोली मैंने किया ही क्या है बड़ी मुश्किल से वे
मंच पर चढ कर आई और दो शब्द बोलकर बैठ गई श्रोताओं में एकदम सहज महिला थी
वे. आज ऐसे लोग मिलना मुश्किल है. जब भी मिला वे हमेशा कहती कि अच्छा काम
करो, सब ठीक हो जाएगा. इंदौर और मंडलेश्वर में भी वो बहुत काम करती थी, घर
जाने पर आज तक उनके यहाँ से कोई खाली हाथ नहीं गया है उनका स्नेह सभी को
बराबर मिलता रहता था. आज उनके निधन का समाचार पाकर बहुत व्यथित हूँ. ऐसी
ममतामयी माँ को नमन और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
— with Herwig Streubel.
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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