दूरदराज
के क्षेत्रों में अब सभी जगह सभी लोगों को समझ में आ गया है कि ये एनजीओ
और कंसलटेंसी का धंधा क्या है. सरकारी, गैर-सरकारी और मीडिया के लोग अब
खुलकर कहने लगे है कि "हमें फलाने का नाम मत बताओ, उसका क्या काम है हमें
मालूम है और भोपाल या दिल्ली में बैठे लोग क्या और किस तरह से पिछड़े इलाकों
को टारगेट बनाकर अपनी रोजी रोटी चला रहे है और मीडिया के नाम पर, गरीबी,
भुखमरी, कुपोषण, दलित, महिला, विकलांगों,
बच्चों, बूढों और वन अधिकारों के नाम पर क्या कैसे कर रहे है हमें सब
मालूम है...........इस तरह की बातें आप हमें मत सिखाईये, हमें सब मालूम है,
क्या करना है, कैसे करना है और कितना करना है ..........मजेदार यह है कि
ये वरिष्ठ अनुभवी लोग भोपाल, दिल्ली के ऐसे घोर कंसल्टेंट्स का नाम लेकर
गलियाते है और कहते है अरे वो......बड़ा कमीना है और उसकी वो फलानी संस्था
कितना ग्रांट हथियाकर पूंजी बना रही है- हमें मालूम है, साला टुच्चा पहले
आता था तो ट्रेन में लटकर आता था और अब यही ससुरा हवाई जहाज में घूम रहा है
और फ़िर माँ-भैन भी निकल जाता है मुँह से........ जागो -जागो, लोग समझदार
हो रहे है दोस्तों......समझ रहे है ना............??? मेरे कई करीबी
दोस्तों के नाम जब दूर दराज के इलाकों में सुन रहा हूँ तो दोनों तरफ से
अफसोस हो रहा है एक तो अपने दोस्तों को दी जाने वाली गालियाँ, दूसरा उनकी
औकात का यूँ सार्वजनिक होना :P बस खुशी यह है कि लोग जागरूक हो गये है और
अब ये धंधे जल्दी ही बंद होने वाले है अब राजधानियों की समझ नहीं चलेगी.
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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