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AAP के कारण देश विदेश में कितना नुकसान हुआ लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँची है यह आंकना मुश्किल है. अभी एक पारिवारिक मित्र जो अमेरिका में नासा में वैज्ञानिक है, मेरे बहुत करीब है और बिलकुल मेरे अपने है, दोनों मियाँ बीबी वहाँ है, ने बताया कि वो सन्न है और जिस तरह का सहयोग उन्होंने और उनके दोस्तों ने किया था अब वे समझ नहीं पा रहे है कि क्या किया जाए. शारीरिक मेहनत के साथ उन लोगों ने आर्थिक मदद भी दी है, जिस कुंदन को आज गालियाँ दी जा रही है उस बन्दे ने ढाई करोड़ रुपया और अपनी जवानी के तीन बेहतरीन साल दिए है , रवि, जो लन्दन में बड़े कंप्यूटर इंजिनियर है, ने अरविंद का पूरा आई टी सेल सम्हाला या एक और अन्य मित्र ने दो सौ फिल्मे बनाई, इस बात की कल्पना अरविन्द कर सकते है ? देश के ये युवा जो पढ़े लिखे काबिल है और अपने देश के लिए विदेश में बैठकर कुछ करना चाह रहे थे, उन्होंने सर्वस्व झोंक दिया तो अब सवाल पूछने का उनका हक़ बनता है और अरविन्द को या आलोक से लेकर तमाम लोगों को बताना पड़ेगा. इमोशनल अत्याचार नहीं चलेगा. आप लोगों का रुपया खाकर बैठे हो अरविन्द केजरीवाल, इतनी आसानी से हडप नहीं सकते तुम यह सब श्रम, भावनाएं और धन.........

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FCRA के तहत सरकार ने आज ग्रीनपीस के फंड रोक दिया और अब पंजीयन ख़त्म करने की बात भी हो रही है. यह फैसला असंवैधानिक और भयानक तानाशाही भरा है, इसका विरोध किया जाना चाहिए.

ये दीगर बात है कि आजकल एनजीओ ने सरकारी फंड लेने के बजाय कार्पोरेट्स या विदेशी हाथ थाम लिए है ताकि ना जवाबदेही रहेगी ना काम करने के झंझट और आप मस्ती से बडी मस्त जगहों पर घर, परिवार, दोस्त, यारों, माशूकाओं के साथ घूमते - फिरते रहो, हवाई यात्रा करो, माल में ऐयाशी करो, खरीदी करो, ठसके से ब्रांडेड कपडे पहनो और आभूषण खरीदो, होटलबाजी करो, ठन्डे प्रदेशों के रिसोर्ट्स पर गर्मी बिताओं और कम्प्लीट एश करो और समाज सेवा के नाम पर प्रोजेक्ट कबाड़ो, गरीबों के नाम पर घडियाली आंसू बहाओ और अपने सारे सरोकार अमीरों के प्रति रखो.
परन्तु ठीक इसके विपरीत ऐसे भी संगठन है जो एनजीओ कल्चर से दूर जमीनी काम कर रहे है और उन्हें भी इसी FCRA क़ानून के तहत दुनिया के किसी कोने से बहुत छोटी सी ग्रांट मिलती है जिसे वे बेहद अनुशासित तरीके से खर्च करते है पर ये प्रकाशन का धंधा नहीं खोलकर बैठे या बौद्धिक बहसों में समय बर्बाद नहीं करते. ये लोग जल - जंगल - जमीन को लेकर स्पष्ट है और हर किसी से भेड़े लेकर गरीब लोगों के पक्ष में खड़े है.
सरकार का इस तरह से संस्थाओं का रुपया रोकना गलत है अगर हाँ विद्या भारती या वाहिनियों को यह रुपया मिलना शुरू हो जाये तो रंगा खुश हो जाएगा. असली जलन यही है कि करोडो अरबों रुपया इन लोगों को क्यों मिले , हम कब तक निक्कर पहनकर घूमते रहेंगे और लोगों के घरों के टुकड़े तोड़ते रहेंगे मांग मांगकर ........

Comments

Unknown said…
वाह दादा क्या सटीक लिखा है !!

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