Skip to main content

4 अप्रेल की पोस्ट्स


भारतीय पत्रकार विचारक, चिन्तक, व्यंग्यकार, आलोचक, साहित्यकार और तमाम विधाओं का सिद्धहस्त ज्ञाता होता है और यह ज्ञान वह बी एस सी में दो साल फेल होकर बी  कॉम या बी ए करने के बाद दो वर्ष में किसी विश्व विद्यालय में चाटुकारिता करके या प्रोफेसरों के चरण पकड़ कर या किसी विचारधारा के कार्यकर्ताओं या कामरेडों के साथ एक्टिविज्म सीखकर एम जे की डिग्री हासिल कर लेता है या सागर जैसे विवि से बगैर गए घर में बैठकर पर्चे लिखकर हासिल कर लेता है और बाद में किसी टटपून्जिये अखबार में कलम घिसकर धीरे धीरे एक बड़े अखबार में जगह पा जाता है फिर वह ज्ञानी होकर सब करता है  - अपने मकान की जुगाड़ से लेकर ट्रांसफर करवाने के ठेके और वेश्याओं के अड्डे पर रेड डलवाने से लेकर जमीन अधिग्रहण के मुद्दों पर लंबा शोध और अंत में शहर या कस्बे की सभी संस्थाओं  से सम्मानित होकर महान बन जाता है धीरे धीरे उसके पास फेलोशिप की बाढ़ आ जाती है और वह विदेशों में ज्यादा रहता है बनिस्बत घर द्वार के और इस तरह से वह गोलमाल होकर (सॉरी ग्लोबल) एक दिन पदमश्री प्राप्त कर लेता है.

हर एकादशी प्रदोष और अमावस पूनम पर भडभड कर्कश ढोलबजाने वाले, हर शनिवार को सुबह से देर शाम तक गंदे से बर्तन में पत्थर डूबोकर मटमैले तेल में लेकर घुमते ये शनि महाराज वाले, ये विधवाश्रम और अनाथालय वाले और हाथी - ऊँटों पर सवारी करते महात्मा, छः पाँव की गाय या बैल वाले, जगह जगह आड़े - खड़े - पड़े गणेश या हनुमान के फोटो दिखाकर लूटने वाले, गुरुद्वारे और मजारों पर लंगर के नाम पर मांगने वाले, ये बाढ़ और तूफ़ान के नाम पर मांगने वाले, ये भगवा यात्रा, हरी चादर औलिया के नाम पर और मजदूर संगठनों के लाल सलाम के नाम पर चन्दा मांगने वाले, होलिका दहन और रावण दहन के नाम पर रूपये एंठने वाले और अंत में समाजसेवा के नाम पर सरकार, अतर्राष्ट्रीय दानदाताओं और कार्पोरेट्स से धन उगाही वाले ये और हम सब सब भारतीय संस्कृति के नाम के जीवित संवाहक है और हमें पाल पोसकर रखना हम सबकी संवैधानिक मजबूरी और दुनिया को शो पीस में सजाकर रखना और परोसना शौक ताकि दुनिया से पर्यटक आ सकें और देश दर्शन कर ताजमहल की स्मृतियों को सजाकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सहेजकर अपने दिलों दिमाग में ले जा सके.


आत्ममुग्ध होना एक बीमारी नहीं वरन एक जड़ता है और यह मुझमे, तुझमे, सबमे है इसलिए गलत कुछ नहीं है, बस नजरिये का फर्क है - यदि आप करें तो लोकाचार और मै करूँ तो प्रचार प्रसार. दिक्कत यह है कि हम जल्दी ही भांप लेते है यह सब होने के बीच अपने और दूसरे का भेद और बना लेते है कुतर्कों के अभेद किले और गढ़ लेते है एक चौहद्दी जो हमें अपने दर्प में बचाकर रखती है, सिसकते रहते है और फिर भी बना रहता है एक भ्रम जबरजस्त. यह आत्ममुग्धता ही है जो कभी किसी को मार देती है जब हम अपने को साबित करने में जुट जाते है और ख़त्म कर देते है एक बरगद को भी जो कभी अपनी हवाई जड़ों से स्थापित हुआ था कड़ी मिट्टी में और तान दिया था एक वितान आसमान को चुनौती देते हुए.


सावधान रहिये जिन लोगों को आपने आगे बढाया है वे आपको इस्तेमाल करके एक दिन आपको ही लाश में तब्दील कर देंगे और आप स्यापा करने के बजाय सिर्फ टुकुर टुकुर देखते रहेंगे और कुछ बोल ना पायेंगे. ये शातिरों की वो दुनिया है जहां दोस्ती, प्यार, अपनत्व और भाईचारा महज हथियार है और जलील करने की नई विधाएं, इसे आप हलके से लेंगे तो समझ लीजिये कि आप भोले बनकर बाजार में एक बेजान वस्तु की तरह खप जायेंगे और माटी में दफन कर दिए जायेंगे इन्ही अपने लोगों से. तो जवाब क्या है इससे बचने का, सिर्फ एक ही हल या जवाब है कि इन्हें बार बार औकात दिखाते रहो और इनके आईने पर पारा गिराते रहो.

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...