गुलजार साहब आपकी दुआओं का इन्तजार है या यूँ
कहूं कि इन पंक्तियों को तकमील की तलाश है.........
"इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा, कामयाबी का कहीं पर तो शिखर आएगा,
आज इस शहर में पहुंचे है तो रुक जाते है, होंगे रुख्सत, तो नया एक सफ़र आएगा,
चिलचिलाहट भरी इस धूप में चलते चलते, जाने कब छांव घनी देता शजर* आएगा,
अपना सर सजदे में उस दर पे रख दे, इक न इक तो इबादत में असर आएगा."
- गुलज़ार
(*वृक्ष)
Comments