1.
जिस अंदाज में राहुल यात्रा कर रहे है , मोदी पर आक्रमण कर रहे है , किसानो से मिल रहे है - इससे दो संभावनाएं है
1- या तो अगले चुनावों में 440 सीट कांग्रेस को मिलेगी या
2- ये 44 सीटें भी साफ़ हो जाएंगी।
— feeling confused.
2.
Sandip Naik का कहानी संग्रह मैं तीन महीने पहले पढ़ चुका था, कुछ कहानियां बाकी थी...कल ट्रेन में 'उत्कल एक्सप्रेस' और 'अनहद गरजे' भी पढ़ी ....संदीप मज़ेदार किस्सागोह हैं....उनकी कहानियां आपको मालवा की खुशबू भी महसूस करवाएंगी और अपने साथ बहा भी ले जाएंगी... उनका लिखने का अंदाज़ भी अलहदा है, ठेट अपना अंदाज़...जो आपको बाकी समकालीन अफशानानिगार से मेल खाता हुआ नहीं लगेगा. अब पारिजात पारिजात के हिस्से ''नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ''.!!
3.
देवास शहर में सांसद ने आज ग्यारह माह बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं किया, ना विकास ना कोई और काम- यहाँ तक कि उनके दर्शन भी दुर्लभ है- जनता की सेवा का क्या करेंगे, यह तो खुदा ही जानता है.........और रहा सवाल पानी जैसी प्रमुख समस्या का तो फिर एक बार गर्मियां सामने है और इंदौर से भीख मांगकर नगर निगम क्षिप्रा नर्मदा लिंक पर काम कर मात्र 2016 (स्रोत नईदुनिया) नलों में पानी देगी - यह सब नायक और महानायकों की लड़ाई का परिणाम है . सीधी बात है जब तीस सालों में विकास नहीं हुआ तो ग्यारह महीनों में आयातित सांसद से उम्मीद लगाना गलत है. जब स्थानीय नेतागण कुछ नहीं कर पा रहे - ट्राफिक के सिग्नल ,ना नाले और सीवेज की समस्या, ना टेकडी पर रोप वे पञ्च छः सालों में लगवा पा रहे तो बाकी क्या उम्मीद करें कि लोकतंत्र में किसी गरीब गुर्गे की कोई समस्या हल होगी. कहने को जिले में चार सांसद, पांच छः तगड़े विधायक है - पर जिले का जो नुकसान हुआ है उसके लिए कोई कुछ नहीं करता, प्रशासन के टुच्चे अधिकारी जो आते जाते रहते है, जिले में अपनी मन मर्जी चलाते रहते है और इन सबको ग़च्चा देकर अपनी झोली भरकर चले जाते है, एक नगर निगम में आयुक्त थे, जिन्होंने निजी कॉलोनी में अपने घर के आगे आज तक बैरियर लगा रखा है एक कॉलोनी की सार्वजनिक सड़क पर, जबकि अब तो वे आयुक्त , कम से कम देवास में नहीं है इस समय - बाकी क्या उदाहरण दूं दादागिरी के प्रशासनिक दादागिरी ? बस स्टेंड पर एजेन्ट की बदतमीजी से एस पी नहीं निपट पाते, या सड़क पर मैजिकों की दादागिरी या बसों में ओव्हर लोडिंग........बाकी तो सब ठीक ही है, कारखाने बंद हो रहे है, रोजगार नहीं पर अपराध बढ़ रहे है, शासकीय अस्पताल का सत्यानाश हो गया, जिला पंचायत के बुरे हाल, एक ढंग का पार्क नहीं .....
यह सब याद इसलिए आ रहा है कि पिछले साल अप्रेल हमने चुनाव में वोट देकर फिर से अपने आपको धोखा दिया था, है कोई देश में सुप्रीम कोर्ट जो इन गैर जिम्मेदार नेताओं को एक बार हिम्मत करके पूछ सकें कि कहाँ हो जनाब आप, कब तक सोते रहोगे........? और अभी सांसद निधि और विधायक निधि का हिसाब तो पूछा ही नहीं है.........सोच रहा हूँ कि सूचना के अधिकार के तहत लगा दूं आवेदन कि ज़रा बताया जाए कि इन निधियों का जिले के लिए जन कार्यों के लिए कितना उपयोग हुआ है? यानी सीधी सीधी बात कि ACCOUNTABILITY क्या होता है माननीय जन प्रतिनिधियों...........???
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