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इस तरह से ख़त्म होता हूँ मै

इस तरह से ख़त्म होता हूँ मै 
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मै आहत हूँ कि अमेजान नदी के एक किनारे, 
टेम्स नदी के दूसरे किनारे और गंगा से वोल्गा तक 
मनुष्यता नष्ट हो रही है

नष्ट हो चुकी है सिन्धु घाटी की सभ्यता 
बेबीलोन की सभ्यता और ख़त्म हो गए बिम्ब 
भाषा नष्ट हो रही है.

आहत नहीं होते सभ्यता के ठेकेदार, जीवन के रक्षक 
डपट देते है मुझे हर बार यह कहकर कि धर्म और 
मनुष्यता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा हूँ अब मै.

आकाशगंगाओं के बीच नष्ट हो गए ग्रह,
खतरा सूरज और चाँद पर भी बढ़ता जा रहा है,,
हवाओं में नष्ट हो रहा है जीवन

सभ्यता, भाषा, हवा, पानी और फूलों को नष्ट कर 
हम विकसित हो गए है और इन सबके बीच 
ख़त्म हो गया मनुष्य, धीरे धीरे.

नष्ट तो हमने कर ही दिए थे पेड़ पौधे और बेलें 
संसार के सबसे सुन्दर फूल और सबसे कोमल घास, 
अब बारी बीजों और कोंपलों की है.

मन के बीच, भावनाओं के तंतुओं में उलझा दिया,
ख़त्म कर दी नश्वरता और शाश्वतता रिश्तो की, 
इस तरह ख़त्म किया यहाँ प्रेम को हमने.

- संदीप नाईक. 

Comments

Anonymous said…
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना।

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