कल जब बस में बैठा बंगाली चौराहे से गांधी हाल के लिए बैठा, तो बस वाले कंडक्टर ने दस के नोट को घूरते हुए कहा कि पांच और चाहिए.........किराया बढ़ गया है.
बड़े बेमन से उसने उसे दस का एक नोट पकड़ा दिया, बस वाले ने कहा कि पांच देता हूँ. सारे रास्ते वो कंडक्टर को याद दिलाता रहा कि पांच वापिस कर दें और फिर सोचता रहा कि ये पांच का किराया बढना कितना भारी पडेगा उसपर और वह परेशान हो गया.
फिर उसने तय किया घर से वो भोर में ही निकल लेगा, पर पांच रूपये रोज के खर्च में और ज्यादा वह बर्दाश्त नहीं कर सकता, सरकार को खूब गालियाँ दी, सह यात्रियों से झगड़ता रहा, एक बच्चे को उसने थप्पड़ लगा दिया - जो रो रहा था, किराये में बढे हुए पांच रूपये का गुस्सा उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. पांच रूपये का मतलब सरकार जानती है, क्या होता है वह एक दुनिया खरीद सकता है पांच रूपये में रोज !!!
अचानक उसने कंडक्टर का कंधा पकड़ कर कहा कि पांच रूपये वापिस क्यों नहीं करते, मेरे रूपये खाकर बैठे हो, कब से लेकर बैठे हो, मेरा स्टॉप आ गया है.
कंडक्टर बोला साहब यही उतरना है क्या, मुझे लगा कलेक्टर ऑफिस जाना है, इसलिए मैंने पंद्रह रूपये कहा था.....यहाँ का किराया तो दस रूपये ही है और उसने दस का नोट वापिस कर दिया सहजता से .......
उसे अचानक इतनी खुशी हुई कि वह कंडक्टर का हाथ पकड़कर चूमने लगा और हुर्रे करते हुए गांधी हाल पर उतर गया लोग उसे पागलों की तरह देखते रहे.........
#मुफलिसी
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