बहुत सारी स्मृतियाँ है मेरे जेहन में सबसे पहली स्मृति है एक विद्यार्थी की जिसके साथ बरसों पत्र व्यवहार चला जब वो एम ए अंतिम वर्ष में था, फिर "सोन चिरैया" नामक ऐतिहासिक कविता की फिर इसी कवि के पी एच डी की और फिर पोस्ट डाक्टोरल की गोरखपुर और दिल्ली के जे एन यु को मैंने इस कवि के पत्रों से जाना और इस बीच कविता पकती रही भीतर कही गहरे में और ठोस हो गयी मानो पिघले लोहे को एक आकार दे दिया हो लचीला सा- जो प्रयोग और नवाचार को करते हुए कविता को एक नई धारा, दिशा और स्वरुप प्रदान करें. एक संग्रह, फिर दूसरा और फिर आखिर देवास में मिलने का मौका सितम्बर सन 2011 में आया प्रत्यक्ष रूप से और फिर तो यह सिलसिला ऐसा चल पड़ा है कि अब हफ्ते में एक बार बात ना हो जाए तो चैन नहीं पड़ता, ना ही दो तीन माह में मिल लें तो.....ये कवि है आज के ख्यात हिन्दी के कवि, प्राध्यापक, उम्मीद के यशस्वी सम्पादक , आलोचक और सबसे ज्यादा मेरे लाडले अनुज जितेन्द्र श्रीवास्तव Jitendra Srivastava.
आज इनका जन्मदिन है और बहुत मुबारकबाद के साथ स्वस्थ, दीर्घायु और लम्बे रचनात्मक जीवन की अशेष शुभकामनाएं व्यक्त करता हूँ.
जितेन्द्र को हमने, मैंने जितना जाना है पिछले दिनों में वह सिर्फ इतना कि वे एक महत्वपूर्ण अध्येत्ता ही नहीं, शोधार्थी ही नहीं, वरन कड़ी मेहनत करके कुछ ठोस कहने वाले सहज व्यक्ति है जो समकालीन हिन्दी मुहावरे और परिदृश्य में इस समय में बिरले कवि है. अभी पिछले माह ही इंदौर में वे थे. नरेश सक्सेना और जितेन्द्र को मालवा के तीन कवियों पर बोलना था पर नरेश जी की तैयारी जहां आधी अधूरी थी या बिलकुल नहीं थी, वही जितेन्द्र ने तीनों कवियों की कविता को बहुत गंभीरता और सामंजस्य के साथ, तर्क और उदाहरणो को उद्धत करते हुए समकालीन कविता की दिशा और दशा पर बात की और जब हमने कवियों के लिए फीड बेक की बात की, तो उन्होंने कहा कि मै व्यक्तिगत रूप से तीनों कवियों से अलग से बात करूंगा पर यहाँ सार्वजनिक मंच से कुछ नहीं कहूंगा. यह दर्शाता है कि एक कवि, एक सम्पादक, एक आलोचक भले ही बड़ा हो जाए पर मनुष्यता, सिद्धांत, मूल्य और सदाशयता उसके लिए यदि सर्वोपरि गुण है तो वह सर्वमान्य है और सर्वगुण संपन्न भी है जो उसे भविष्य में सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रशस्त करता रहेगा.
जितेन्द्र की कविता और आलोचना को लेकर सात पुस्तकें आई है और इधर वे देश भर में होने वाले कार्यक्रमों सक्रिय है और देश विदेश में उनके विद्यार्थी हिन्दी की ध्वजा लहरा रहे है. जितेन्द्र यश - कीर्ति और नाम की पताकाएं फैलाएं रखें और खूब तरक्की करें, रचें - बुनें और मनन करें - यही दुआ आज के दिन हम सब कर सकते है. मेरी ओर से बहुत प्यार, दुआएं और अशेष शुभकामनाएं.
आज यह पोस्ट लिखते हुए जितेन्द्र के लिए असीमित प्यार है, मधुर स्मृतियाँ है और देवास, इंदौर, भोपाल की कुछ यादें है. मै, Tarun Bhatnagar, Bahadur Patel पितृतुल्य चंद्रकांत देवताले जी और परम श्रद्धेय पदमश्री वसुंधरा ताई कोमकली के साथ खिंचवाई कुछ तस्वीरें आपके लिए साझा कर रहा हूँ.
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