देश
के छोटे से राज्य छत्तीस गढ़ में दो लाख अस्सी हजार जवान तैनात है इस समय
जो आम लोगों, खासकरके आदिवासियों की हर हरकत पर नजर रख रहे है, उनके जीवन
में बुरी तरह से हस्तक्षेप कर रहे है, यहाँ के हर गाँव में आदिवासी लोग
अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे है और रोज सरकार और इन पैरा और मिलिट्री
फोर्सेस से दो चार हो रहे है. ऐसे में कैसे आप विकास की बात कर सकते है और
कह सकते है कि नियोगी ने जो छत्तीस गढ़ का सपना देखा था वो पूरा होगा, सभी
जन आंदोलन टूट चुके है सारे लोग हाथी के कान, नाक, पूंछ पकड़ कर हाथी सिद्ध
करने की कोशिश कर रहे है. नवीन जिंदल जिसकी तनख्वाह एक वर्ष में चौहत्तर
करोड रूपये है और जो भाजपा और कांग्रेस दोनों को जेब में रखता है क्या इन
आदिवासियों को स्थानीय संसाधनों पर कब्जा करने देगा........कुल मिलाकर इस
पूंजीवाद ने देश के चंद लोगों को संसाधन लूटने की खुली छूट दे रखी है और
आदिवासियों को खदेड़ कर वहाँ की सरकार एक नया पूंजीवादी तंत्र स्थापित करना
चाहती है. दो लाख अस्सी हजार जवानों की तैनाती क्या दर्शाती है हम किस
लोकतंत्र में जी रहे है और कहाँ पहुँचना चाहते है........???
"देश के हालात और नई राजनीति" चर्चा में सुधा भारद्वाज
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