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कठिन समय में जब सब तरफ से सिवाय निराशा के कुछ नजर नहीं आ रहा है

अभी कुछ दिन और रहूंगा तुम्हारे साथ, तुम्हारी खबरों के साथ
अभी कुछ दिन और बुढा और धूमिल होउंगा
और इधर के उजाले को ओट देकर देखना होगा
अभी और इंतज़ार करना होगा, नफ़रत को झेलना
और गुस्से को दबाने की कला सीखनी होगी.


अभी और धूल गिरेगी गोधुली में उतरना होगा गुम होने तक
ठण्ड से राहत का इंतज़ाम करना होगा
आग जलानी होगी
अभी और धीमे चलना होगा

एक छड़ी खरीदनी होगी

पुराने कपड़ों की गंध अभी और झेलना होगी
कुछ लोगों से कहना होगा, आपको पहचानता हूँ मै थोड़ा थोड़ा,
दुनिया से दुनिया का अर्थ पूछना ही पडेगा...........

-दूधनाथ सिंह

(साभार -अशोक वाजपेयी- जनसत्ता "कभी-कभार" रविवार 14 अक्टूबर 2012)

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