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भोर सुबह के हलके विचार ...........

I


देवास में दो एस डी एम ने अभी अनूठे काम किये है सोनकच्छ के एस डी एम कालूसिंह सोलंकी ने एक महिला पटवारी से दुष्कृत्य करने की कोशिश की और कल देवास के एस डी एम प्रभात काबरा ने एक किसान जुगल प्रजापति को मंडी में सरे आम चांटा मार दिया जब वो अपनी सोयाबीन की फसल को उचित भाव पर बेचने की मांग कर रहा था बाद में किसानों के विरोध करने पर इन्ही प्रभात काबरा ने सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल बुलाकर किसानों को धमकाया. यह हालत है प्रशासन की और गुंडागर्दी की वाह रे किसान पुत्र और जमीन से जुड़े लोगों का शासन मजेदार यह है की जिला कलेक्टर, जो प्रमोटी अधिकारी है, ने कोई कार्यवाही नहीं की बस जांच समिति बनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है. मप्र में प्रशासन का बुरा हाल है सारे अधिकारी खासकरके रेवेन्यु से जुड़े और आय ए एस तबके के अधिकारी गुंडे बन गए है अभी बैतूल के जिलाधिकारी ने आर टी ओ बैतूल को पुरे जिले के अधिकारियों के सामने भरी मीटिंग में भगा दिया और कहा की यदि जिले में नजर आये तो देख लेना......ये जिला कलेक्टर बैतूल बी चंद्रशेखर है जिन पर करोड़ों रूपये के घपले का आरोप है मनरेगा में. पुरे प्रदेश में पुलिस निकम्मी साबित हो गयी है रोज़ मासूम बच्चियों से दुराचार की खबरें और दुराचार के बाद ह्त्या जैसे जघन्य काण्ड हो रहे है पर किसी को फ़िक्र नहीं है प्रदेश के तारण हार अपने वोट बेंक बढाने को बुजुर्गों को तीर्थाटन करवा रहे है अमेरिका घूम रहे है और बाकी नेता जमीन जायदाद के मामलों में लगे है की जितना कबाड़ ले उतना कर लो.कल हो ना हो......



II
सीहोर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक मजेदार जानकारी दी कल शाम को कि सीहोर के कलेक्टर ने एक अनूठी पहल की शुरुआत की है कि जिले के जिस घर में बेटी पैदा होगी वहाँ वे नगाड़े बजवायेंगे ताकि बेटी का महत्त्व बढ़ सके........वाह क्या समझ है हमारे प्रशासनिक अधिकारियों की वे इतनी आसानी से सदियों से चले आ रहे सामाजिक ढाँचे में बदलाव कर देंगे.......क्या हो गया है इन सबकी समझ को.? प्रदेश मुखिया की "गुड बुक्स" में रहने के लिए अपना होश हवास कहा रख आये है...........? बेटियाँ पैदा करो उन्हें एक साल का भी मत होने दो उनके साथ दुराचार करो, छुट्टा खेल है फिर उन्हें मारकर फेंक दो किसी जंगल में .पिछले तीन दिनों में इंदौर के अखबारों में यही खबरें है छः माह की बेटी से लेकर चौदह साल तक की बेटियों के साथ यही हो रहा है और अगर दुराचार नहीं तो जान से मार रहे है लोग क्या हो गया है इस समाज को सब के सब पगला गए है क्या......? आज भोपाल की खबर है कि एक छोटी सी लड़की को दुराचार के बाद मारकिअर बुदनी के जंगल में फेंक दिया......कहा है प्रदेश में प्रशासन और नारी सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले एनजीओ...... बेबस महिला आयोग जिसकी कोई सुनता नहीं बस भेरू जैसी बैठी है सुविधाएं भकोसते हुए.... सबकी सब.....



III
किसने कहा कि हम आज़ाद हो गये है और हमारे जिलों में "लोक सेवक" है जो राष्ट्रीय स्तर पर चयनित होकर जनता जनार्दन की सेवा करने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते है ......आईये एक बात से समझते है. पूरा प्रशासन लायसेंस प्रथा से चलता है हर बात के लिए लायसेंस लेना होता है शराब से लेकर हथियार रखने तक के लिए और इसमे इन बेचारे भोले भाले लोक सेवकों की बड़ी भूमिका होती है जो अपने जिले के एक कार्यकाल में कितनों को उपकृत करके अपनी जेबें भरकर चले जाते है रेत खदान से लेकर तमाम तरह के लायसेंस ...थोड़ा गंभीरता से विचार करे तों हम पायेंगे कि पूरा देश लायसेंस प्रथा पर चल रहा है एक जमाने में उज्जैन नगर निगम ने वेश्याओं को भी लायसेंस दे दिए थे बाद में सिंहस्थ के चलते ये कैंसल हुए थे. अंग्रेजों की बनाई यह लायसेंस प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है और इसे पोषित करने में नेताओं से लेकर प्रशासन के लोग सब शामिल रहते है. होशंगाबाद में अभी पिछले हफ्ते एक बाबू को रिश्वत लेते पकड़ा गया जो शस्त्र लायसेंस जारी करने वाली शाखा में था बरसों से, और करोड़ों रूपये डकार चुका था. एक कलेक्टर जब आता है जिले में तों वो कई लोगों को स्थानीय विधायकों और ना जाने किन- किन प्रभावशाली लोगों की अनुशंसा पर शस्त्र के लिए लायसेंस जारी करता है और इसका अर्थ यह है कि इन विशेष लोगों का क़ानून पर से भरोसा उठ गया होता है इसलिए व्यक्तिगत रूप से अपने लिए शस्त्र का लायसेंस लेते है, इसका कभी कोई हिसाब नहीं होता कि एक कलेक्टर अपने कार्यकाल में कितने शस्त्र लायसेंस क्यों और किसकी अनुशंसा पर जारी करके जाता है, यह जानना बहुत उपयोगी होगा कि आखिर हमारे विधायक, महत्वपूर्ण लोग क्यों, किसकी और कैसे अनुशंसा करते है शस्त्र रखने के लिए यानी जो लोग कार्यपालिका, प्रशासन, पुलिस और विधायिका में है वो लोगों को सुरक्षा का वचन नहीं दे सकते तों आम आदमी के सुरक्षा की क्या बात राज्य नामक तन्त्र करता है??? मुझे लगता है कि हम स्टेट विहीन राज्य की ओर बढ़ रहे है जहां सिर्फ और सिर्फ गुंडा राज्य बन् रहा है और इसमे सबसे ज्यादा काम प्रशासन और विधायिका के लोग अपने मनमाने ढंग से कर रहे है. इस लायसेन्स प्रथा पर रोक लगाने की सख्त जरुरत है जो कई अधिकारियों और प्रतिनिधियों को पोषित करती है और एक अराजकता के ओर बढाती है. क्या ये मुद्दे किसी राजनैतिक दल के लिए आगामी चुनावों में हो सकते है या किसी में हिम्मत है कि इस तरह के मुद्दोंपर खुलकर अपनी बात या विचार रखे.......क्योकि ये सब "आयरन कर्टन" के पीछे के खेल है बाबू मोशाय बेचारा आम आदमी तों जानता नहीं और जो जानते है वो साले प्रशासन और नेतागिरी को अपनी जेब में रखकर घूमते है....

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