अभी
राजेश उत्साही से बातचीत हुई और उन्हें यह दुखद समाचार दिया और अनुरोध भी
किया कि वे अपने शब्दों में हमें बताए कि डा श्रीप्रसाद जी का बच्चों के
साहित्य में क्या योगदान है.......क्योकि राजेश ने उनके साथ लंबे समय तक
चकमक में रहते बच्चों के साहित्य पर काम
किया और श्रीप्रसाद जी जैसे कवियों के साथ बच्चों के लिए नए सृजन
किये...........हिन्दी ने देश के तमाम बच्चों ने अपने लिए लिखे जानेवाले
साहित्य और बाल साहित्य का सच्चा पुरोधा खो दिया ............नमन और
श्रद्धांजलि डा श्रीप्रसाद जी को
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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