आम
तौर पर सरकारी विभागों में पांच हजार रूपये से ज्यादा की राशि के स्वीकृती
जिला कलेक्टर करते है और हर प्रकार के चेक पर हस्ताक्षर, चाहे वो पांच
हजार के हो या उससे कम के हो, सम्बंधित विभाग के प्रमुख और जिला कलेक्टर ही
करते है. परन्तु ग्राम पंचायतों में लाखों के चेक सरपंच और सचिव करते है
ना कोई स्वीकृती ना ना कोई नास्ति ना कोई और कागज़ी कार्यवाही बस सीधा चेक
बेंक और फ़िर जेब........यह भी भ्रष्टाचार का एक सबसे बड़ा कारण है कि गाँवों
का विकास नहीं हो रहा. सचिव जो अमूमन दसवी या बारहवी पास है और सरपंच जो
सिर्फ नाम मात्र को पढ़े है व्यापक तौर पर...लाखो का ट्राजेक्शन करते है
नरेगा आने के बाद पंचायतों में राशि की बाढ़ आई हुई है इसके अलावा विधायक,
सांसद और जन भागीदारी के काम कुल मिलाकर ढेर रूपया पर कही कोई प्रक्रिया
नहीं है ना मूल्यान्कन है बस आडिट नाम का चुतियापा है जिसमे सरकारी आडिटर
बहुत कुछ जिम जाते है सरपंचों से .....अब कोई कैसे ये बताए कि ये बदलेगा
कैसे.........चेक पर हस्ताक्षर के पावर किसे दिए जाये ताकि प्रक्रिया
सुनिश्चित की जा सके और सही आहरण हो युक्तियुक्त ढंग से राशि का सदुपयोग हो
और सचिव सरपंच के मनमाने व्यवहार पर लगाम कसी जा सके. यानी कि हालत यह है
मित्रों की सौ रूपयों के चेक पर भी कलेक्टर के हस्ताक्षर है और लाखों के
चेक पर सरपंच का अंगूठा और सचिव "बदरीपरसाद" के हस्ताक्षर .............अब
ये किसके दोष है भगवान जाने पर देश का विकास हो रहा है
वाया........भ्रष्टाचार.....(प्रशासन पुराण 60)
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