आजादी के बाद दो करोड हेक्टेयर भूमि का हस्तांतरण अभी तक बड़े लोगों को हो चुका है जिसमे उद्योग, और बड़े घराने शामिल है, दस में से सात करोड जोतों को (सीमान्त किसान जिनके पास ढाई एकड़ से कम जमीन है) को अपने जमीनों से बेदखल किया गया है, और ये सब सरकारी आंकड़े है. आदिवासी जो सिर्फ बाजार में नमक और केरोसिन लेने आते थे और एक सौ तीस प्रकार के खाद्यान्न और सब्जी एक बरस में खाते थे. आज सिर्फ बीस-पच्चीस प्रकार की चीजें ही खा पा रहे है क्योकि मार्केट उनके रसोई तक घूस गया है और उनकी जीवन शैली को तहस- नहस करके अपना सब कुछ थोप रहा है. कैसे इस नई राजनैतिक व्यवस्था ने एक स्वालम्बी समाज को परावलम्बी और कर्जे से भरा हुआ समाज बना दिया है. आज जरुरत है कि जो आदिवासी बच्चे और युवा शालाओं में पहुँच चुके है उनके बीच इस स्वालम्बी से पराधीन हुए समाज की बात फैलाई जाये इस विचार को फैलाया जाये कि देश की हालत क्या हो गई है, उनके संसाधन और जल, जंगल, जमीन पर सरकारें, उद्योगपति और सभी पार्टियां कब्जा करके बैठ गई है और लगातार उन्हें खदेड़ रही है. एक नई लड़ाई के लिए विकास और संसाधनों की लूट चुनाव के मुद्दें नहीं बन सकते कभी भी. हमें इस विचार और लड़ाई को हर हालत में जारी रखना होगा नकारात्मकता बहुत है पर आशा से देखने की जरुरत है और यही बच्चे, यही युवा कल हमारी लड़ाई के धारदार हथियार बनेंगे और इस लंबी लड़ाई को आगे लेकर जायेंगे. राजनीति का मतलब विधान सभा में चुनाव लड़ना और मध्यम वर्गीय चरित्र के मुद्दे जैसे बिजली, उठाकर मैदान में लड़ना-शोरगुल करना नहीं है, राजनीति का मतलब आनेवाले समय की लड़ाई के बेहतरीन फ्रेम वर्क तैयार करना और लोगों को लड़ाई के लिए तैयार करना है.
"देश के हालात और नई राजनीति" विषय पर चर्चा में जयश्री, आधारशिला शिक्षण केंद्र, सेंधवा, मप्र.
"देश के हालात और नई राजनीति" विषय पर चर्चा में जयश्री, आधारशिला शिक्षण केंद्र, सेंधवा, मप्र.
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