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प्रशासन पुराण 59

किसी साथी ने बताया कि मप्र के मुख्य सचिव भोपाल में पैंतीस आय ए एस और आय पी एस अधिकारियों को श्रीलंका के राष्ट्रपति के सफल दौरा आयोजन की खुशी में अरेरा क्लब भोपाल में पार्टी दे रहे है, इसी दोस्त ने यह भी बताया कि यह खबर आज के जागरण में छपी है मुझे मिली नहीं, कोई लिंक बताकर मदद करेगा..............खैर अभी बड़े साहब दौरा करके लौटे है श्योपुर का जहां पच्चीस बच्चे मर गये थे और यह मरने का क्रम अनवरत जारी है. साला दो टके का कुपोषण इसका मुख्य कारण है, ये गाँव वाले ना ढंग से जीते है,, ना बच्चे सम्हालते है ना बढ़िया "न्युट्रीशियस फ़ूड" बनाकर खाते है और जब साले बच्चे मरने लगते है तों सरकार को दोष देते है.........एक तों ढेर सारे पैदा कर लेते है...........अरे भाई दे रहे है ना- राशन भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार पैंतीस किलो नहीं पर दे तों रहे है, दूसरा आंगनवाडी भी तों है ढेर सारी सुविधाएँ और योजनाएं, फ़िर साले ये एनजीओ वाले भी तों है जो यूनिसेफ और ना जाने कहाँ कहाँ से ग्रांट का जुगाड करके बैठे है, मीडिया को क्या और कोई काम नहीं है हद है यार पीछे ही पड़ गये है, ..........अब ज़रा सुस्ताने दो भाई, वैसे मप्र में बौद्ध विश्व विद्यालय का खुल जाना बड़ी बात है और बड़ा मुश्किल था तमिलनाडू से आये दस हजार लोगों को रोकना वायको को रोकना और बड़ी हिट हुई दिन में गिरफ्तार और शाम को राज्य का अतिथि है कोई ऐसा उदाहरण दुनिया में .खैर .....रिलेक्स, बाबू मोशाय, रिलेक्स........कम ऑन रिलेक्स .....(प्रशासन पुराण 59)

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

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शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही