इटारसी में आज विकास के मुद्दों से जुडी चार महिला नेत्रियों को सुनने और समझने का मौका मिला- शमीम मोदी, माधुरी बहन, सुधा भारद्वाज और जयश्री. चित्तरूपा पालित आ नहीं पाई. ये चारों महिला नेत्रियां जमीनी स्तर पर आदिवासियों के साथ जल, जंगल, जमीन और दीगर विकास के मुद्दों पर काम कर रही है. देश की चुनौती और नई राजनीति पर अपने अनुभवों की बिसात पर इन चारों नेत्रियों ने जमकर प्रकाश डाला. शंकर गुहा नियोगी से सलवा जुडूम, नर्मदा बाँध, मनरेगा, जन आंदोलन, आदिवासी शिक्षा, जल, जंगल, जमीन, नवीन जिंदल, राजनैतिक विकल्प, मजदूर आंदोलन और उनका फ्रेम वर्क, रमनसिंह से लेकर अरविंद केजरीवाल और गांधी से लेकर छोटे मोटे नेता तक की बातें हुई. एक बात तों साफ़ थी कि जमीनी अनुभवों से पककर और तपकर आई ये नेत्रियाँ बहुत गंभीरता से सत्ता और व्यवस्था के खिलाफ लोगों को लामबंद करके काम कर रही है आज ये चार नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं है चाहे बडवानी का आंदोलन हो या सेंधवा का स्कूल हो, छत्तीसगढ़ में दल्ली राजहरा की बात हो या शमीम मोदी का हरदा का आंदोलन हो वन अधिकारों को लेकर. पूरी बातचीत में कई बातों पर विस्तार बाते हुई और खूब सवाल भी उठे और सरकार नामक तंत्र और इसकी सदाशयता पर ढेरों सवाल उठाये गये. जिस अंदाज में किशन पटनायक की स्मृति में यह आन्दोलन और कार्यक्रम आयोजित किया गया था वहाँ इटारसी में लोगों की उपस्थिति बहुत ही नगण्य थी मुश्किल से स्थानीय दस पन्द्रह लोग थे बाकी हम कुछ साथी होशंगाबाद से कुछ भोपाल, पिपरिया, जबलपुर से थे. यह उपस्थिति दर्शाती है कि स्थानीय साथी प्रयासरत तों है पर रिस्पोंस क्या है, यह मेरे लिए बहुत गंभीर बात थी और वर्तमान सन्दर्भ में कितने लोग इस तरह के मुद्दों से और समाजवादी जन परिषद से जुड़े हुए है.
— with Pallav Thudgar and Gopal Rathi in Itarsi, Madhya Pradesh.
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