यह जंग थी दो लोगों की और परिणाम पता नहीं किसी और भुगतना पडेगा................कब, कहाँ, कैसे, यह तों नहीं पता पर हालात और खराब हो रहे है यह बात सोलह आना सच है..............
इस जंग का पूरा मुकम्मल प्लान था, आज भी है और हमेशा रहेगा.............पर इस जंग के मायने मेरे लिए और उसके लिए अलग हो सकते है................वो तों खैर आपस में खून का एक सम्बन्ध भी रखते थे, जमीन की हद से जद तक जुड़े थे और हम.............हम तों बस यूँही साथ-साथ चले और जुडते गये ....गाहे-बगाहे..............पर हालात ऐसे हो जायेंगे यह तों कभी सोचा नहीं था..........इस तरह से षडयंत्र और ऐसे घातक वार वो भी निहत्थे आदमी पर.....
आप विचार को मार नहीं सकते, आप एक कीड़े को कुचल सकते हो पर उसकी कुतरने की कला को नहीं मार सकते...........जीवन ऐसा होता है यह पता तों था पर हम तुम और वो इतने गिर जायेंगे वो भी ऐसे ऐसे..........यह तों असंभव था, शर्म भी नहीं आती अब..............यह जंग जीत कर ही हारी जा सकती है अब सिर्फ अपना जमीर बेचकर और सब कुछ जीत-हारकर बस........
तुम गिर चुके हो मेरी ही नहीं, इस संसार में सबकी नज़रों से भी......अब इस जंग को मुकम्मल करो पूरी तरह से जीत कर एक लंबी लड़ाई हार जाओ......जीवन से और अपने आप से बस तभी इसे हम जंग कह पायेंगे......
आखिर बात क्या है...............
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