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कभी जो थे प्यार की जमानत

A Tribute to Ghazal maestro Mehdi Hassan.......

हमारी सांसो में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती छलक रहीं है

कभी जो थे प्यार की जमानत, वों हाथ है गैर की अमानत
जो कसमे खाते थे चाहतो की, उन्ही की नीयत बदल रहीं है

किसी से कोई गिला नहीं है, नसीब में ही वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना, हिना वही पे महक रही है

वों जिनकी खातिर ग़ज़ल कहे थे वों जिनकी खातिर लिखे थे नगमे
उन्ही के आगे सवाल बन के ग़ज़ल की झांझर झलक रही है.........

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