कहा तो था कि आउंगा आज ही वो भी जानने के बाद मेरे बताने के बाद................फ़िर कहा अटक गये...........सामने से गुजरा तो इतने मशगुल थे कि पहचाना भी नहीं या मुझसे बात करने में दोस्तों को छोडना पडता.........जो भी हो मै तो उसी कोने से एकटक ताकता रहा कि अभी पलटोगे और एक आवाज़ दे दोगे कि रुक जाओ कहा जा रहे हो अँधेरे में मिलकर तो जाओ पर आसमान में घटाटोप अन्धेरा और छा गया हल्की सी बूंदा बांदी होने लगी जो आग जल रही थी वो शायद शांत होने को नहीं और भडकाने को लगी थी और ऐसे में मेरा देर तक कड़े रहना मुश्किल हो गया यह पक्का हो गया था कि तुम देखकर भी अनजान बन् गये और आज ना आने के लिए भूल गये वो सब दिन और वो सब...........जो गजल की जुबान में कहू तो.....हममे तुममे करार था.....................तुम्हे याद हो कि ना याद हो........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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