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फ़िर एक बार फराज़.............

कुछ मुहब्बत का नशा था पहले हम को फराज़,
दिल जो टूटा तो नशे से मुहब्बत हो गयी...!!
हम जमाने में यूंही बेवफ़ा मशहूर हो गए फराज़,
हज़ारों चाहने वाले थे किस किस से वफा करते...!!
उसे तराश के हीरा बना दिया हम ने फराज़,
मगर अब सोचते हैं उसे खरीदें कैसे...!!
आँसू हंसी हंसी में निकल आए क्यों फराज़,
बैठे बैठे यह कौन से गम याद आ गए...!!
काट कर जुबां मेरी कह रहा था वो फराज़,
अब तुम्हे इजाज़त है हाल-ए-दिल सुनाने की...!!
“फराज़” वो आँखें झील सी गहरी तो हैं मगर,
उनमें कोई अक्स मेरे नाम का नहीं,
आशिक़ी से उसकी उसे बेवफ़ा न जान,
आदत की बात और है वो दिल का बुरा नहीं...!!
तुम मुझे ख़ाक भी समझो तो कोई बात नहीं,
यह भी उड़ती है तो आँखों में समा जाती है...!!
किसी के एक आँसू पर हजारों दिल तड़पते हैं,
किसी का उम्र भर का रोना यूंही बेकार जाता है...!!
उसने मोहब्बत की कसम दी है,
और प्यार का वास्ता भी लिखा है,
उसने न आने को कहा है और,
साफ साफ लफ्जों में रास्ता भी लिखा है...!
तुम तक्क़लुफ़ को भी इख्लास समझते हो फराज़,
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला...!!
 
कुछ ऐसे हादसे भी ज़िंदगी में होते हैं फराज़,
कि इंसां बच तो जाता है मगर ज़िंदा नहीं रहता...!!
तुम इसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठे हो फराज़,
उसकी आदत है निगाहों को झुका कर मिलना...!!

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