सुना
था कि एक अशोक के पेड़ को लगाने से सौ पुत्रों का सुख मिलता है, बहुत साल
पहले यानी कि सन १९८२ में जब यह मकान बना ही था और इसके फेंसिंग भी नहीं
खीची गयी थी तब मैंने बाल्गढ़ की नर्सरी से लाकर एक नहीं, दो नहीं, पुरे
सात अशोक के पेड़ लगाए थे........कालान्तर में वे बड़े होते गये और उनकी
पत्तियाँ इस तरह से जगह घेर लेती थी कि हमें गाहे- बहाहे उन्हें छांटने के
लिए एक आदमी बुलाना पडता था जो उन डालियों को काटकर
सड़क पर फेंक देता था, कई दिनों तक उन पत्तियों को सूखता हुआ देखकर दुःख
होता था कि उन्हें गाय जानवर भी नहीं खाते थे. धीरे धीरे समझ आया कि संसार
में सब ऐसा ही होता है कहावतों और मिथकों में जीने वाले हम लोग अचानक कही
से कुछ सुन लेते है फ़िर अंधानुकरण करने लगते है और मन की भ्रांतियों को
गुत्थम गुत्था करके अपने लिए दुःख पाल लेते है जैसे यह सौ पुत्रों का सुख
............हा हा हा...........एक या दो पुत्र ही आदमी को इतना दुःख दे
देते है कि वो सारे उम्र उनसे ही निजात नहीं पा सकता तो तो सौ पुत्रों का
दुःख कैसे छुडवायेगा............मिथक, जीवन और सच्चाई कितने अलग होते है
ना............? आज अचानक एक कथा पढ़ रहा था तो यह जिक्र सामने आया अशोक के
पेड़ लगाने का तो आज के परिपेक्ष्य में जाना समझा और फ़िर लगा कि यह छोटी सी
पढ़ी हुई बात बरसों मन में घर करके रह गयी और इस क्रम में जीवन का कितना
सत्यानाश हो गया यह कोई समझता है क्या................?
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