कल उत्कल बनर्जी ने इंदौर में स्व श्रीकांत जोशी स्मृति समारोह में लगातार दसवे वर्ष भी कविता संध्या का आयोजन किया...............इस बार आमंत्रित कवि थे कुमार अम्बुज. कुमार अम्बुज ने अपने लगभग सभी संग्रहों से प्रतिनिधि कवितायें पढ़ी और प्रीतम लाल सभागृह में बैठे श्रोताओं को लगभग मन्त्र मुग्ध कर दिया. किवाड, क्रूरता, अतिक्रमण, अमीरी रेखा और अन्य संग्रहों से पढ़ी गयी कवितायें सिर्फ कवितायें नहीं वरन जीवन की वे कठोरतम त्रासदियाँ है जो हमें ना सिर्फ समाज में होने वाली बातों का आईना दिखाती है वरन एक लडने की जिजिविषा भी देती है, ये कवितायें कुमार के गहरे आब्जर्वेशन और संवेदना से आती है इसलिए वे सीधे श्रोताओं के मन में घर कर लेती है या पाठक को हिला देती है. कुमार अम्बुज एक सुलझे हुए कवि ही नहीं बल्कि एक संगठनकार है जैसाकि विनीत ने कल कहा था कि वे कवि से ज्यादा आम आदमी, मजदूरों की लामबंदी और लोगों के मुद्दों पर काम करने वाले एक्टिविस्ट है जो कविता के बहाने से अपनी सामाजिक प्रतिबद्धताएं दर्शाते है. स्वभाव से विनम्र कुमार अम्बुज ने हाल में मोजूद लोगों को साथी के रूप में निरूपित करते हुए अपनी यात्रा का साक्षी बताया और बहुत सहजता से कामरेड आलोक खरे, ब्रजेश कानूनगो, बहादुर पटेल, विनीत तिवारी, आशुतोष दुबे, विवेक गुप्ता, जैसे कवियों और सहयात्रा में शरीक लोगों के नाम लेकर अपने काव्य प्रेम और ऊर्जा का स्रोत बताया. अशोकनगर, गुना के इप्टा के साथियों को याद किये बिना उनका काव्य पाठ अधूरा रहता सो उहोने उन्हें भी बहुत स्नेह से याद किया, शायद यही एक कवि का होना और एक अच्छे इंसान का होना है जो उसे अन्ततोगत्वा सरल कवि के रूप में स्थापित करता है. कुमार अम्बुज ने यह भी स्वीकारा कि इंदौर में बेंक में काम करते हुए उन्होंने अपने जीवन की बेहतरीन कवितायें रची है जो उनके लिए महत्वपूर्ण है. जेब में दो रूपये जैसी कविता मुझे उनकी सबसे प्रिय कविता लगती है जो एक आम आदमी के पुरे डर, हकीकत, और संसार के मायावी स्वरुप में बदलते जा रहे समय में आदमी को उसकी औकात याद दिलाती है पर इस सबके बावजूद भी यह आदमी लगातार संघर्षरत है सिर्फ दो रूपये जेब में लेकर......आज जब सरकार अठ्ठाईस रूपये और बत्तीस रूपे से उसकी सामाजिक आर्थिक औकात तय कर रही है. जमीन, भाई, क्रूरता और स्त्रियाँ, प्रेम और जीवन के अन्य दैनदिन विषयों से एक पूरा रचना संसार बुनते हुए वे बेहद चौकन्ने है और कही भी लगता नहीं कि वे किसी भी प्रत्यक्ष या छूते हुए अन्याय को छोड़कर निकल जायेंगे.............अपनी कविता का झंडा उठाये हुए...........मुझे लगता है कि वे आने वाले समय में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले कवि की सूची में अपना नाम दर्ज करायेंगे.......यही कामना और शुभेच्छाएं है.............एक अतृप्त कार्यक्रम से यकायक उठकर आना अखरता तो है पर महानगरों में समय का भी अपना चक्र होता है और समय पर सब खत्म होना भी एक तरह की क्रूरता है.
Kumar Ambuj, Brajesh Kanungo, Bahadur Patel,,,,,,,and all Friends...
11 June 2012
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