सरकारी दफ्तर था सो जाहिर है लोग भी सरकारी होंगे और वे भी असरकारी, सबका सबसे सम्बन्ध था सबकी सबसे प्रीति थी और सबने सब सांठ गाँठ रखा था सो कही कोई दिक्कत नहीं आती थी ठीक एनजीओ वालों की तरह जो एक तरह की भाषा बोलते थे और एक जैसा ही व्यवहार करते थे. इस पुरे दफ्तर में पुरे समय धुएं के बादल छाये रहते थे कोई भी आता तो चपरासी से लेकर बाबू और बड़े साहब भी बीडी की मांग करते थे बस अकाउन्टेंट था जो ससुरा सिगरेट मांगता था उसके अनुशासन और मूल्य बहुत ही अलग थे. जब किसी नए ज्वाइन हुए आदमी से लगने वाले कर्मचारी ने कहा कि घूम्रपान तो निषेध है तो सारा दफ्तर मानो नींद से जाग गया और उस नए से आदमी को काटने को दौड़ा और बोला कि नियम कायदे हमें ना सिखाओ मियाँ, यहाँ तो सालों से यही होता आया है और होता रहेगा. अब सवाल यह था कि बात तो सही थी पर कैसे रोके सो सबने मिलकर एक नियम तय कर लिया कि हर आने वाले से एक बीडी बण्डल और सिगरेट के पैकेट के रूपये मांग लिए जाए और फ़िर शाम को इकट्ठा करके आपस में बाँट लिए जाए ताकि जिसको जब पीना हो पी ले- बाहर खुले प्रांगण में, संडास में या इस बंगले से नुमा दफ्तर के किचन में, बस तकलीफ थी तो उन भद्र सी दिखने वाले दो महिलाओं को जिनमे से एक दिन भर साडी का पल्लू सम्हालकर स्लीपर उतारकर चक्करघिन्नी बनी घूमती रहती थी और दूसरी बीस मिनिट की बस यात्रा कर आयी हुई थकान मिटाने को बैठी रहती थी, चूँकि दोनों ही महिलायें कोटे से थी सो कोई कुछ बोल भी नहीं सकता था वैसे भी सारा दफ्तर कोटे में आता था. नया आदमी चकित था और हैरान कि कैसे एक दफ्तर में दिन दहाड़े बीडी सिगरेट चल रहे है और वो भी परमार्थ के सहारे. बाकी गुटखा तम्बाखू और दीगर बातें तो अलग थी बस कही लिखा नज़र नहीं आता था कि राम नाम सत्य है !!! ( प्रशासन पुराण 49)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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