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प्र में अब एक बड़े मैनेजर और सबसे ज्यादा रसूख वाले कारपोरेट का शिक्षा
में दखल हो रहा है अब आप समझ लीजिए कि अगले पांच बरसों में शिक्षा का और भी
ज्यादा कबाडा होगा क्योकि ये लोग ना तो शिक्षा की समझ रखते है, ना कोई
विचार , ना कोई विकल्प है, ना कोई अवसर- बस करोडो रूपयों का दाना पानी है
और बूढ़े रिटायर्ड लोग जो रूपये पानी और विदेशों की चाहत में मौत की राह तक
रहे है लाचार निकाले गये कर्मचारी ........जी हाँ
आप अभी भी नहीं पहचान पा रहे है ये वही है जो स्कूल से लेकर विश्व
विद्यालय तक बना बैठे है और इनके कार्यकर्ताओं के नाम से उत्तरांचल की
शालाओं में दीवारों पर नील से "अनमोल वचन" लिखे गये है. एक समय था जब म्
प्र में शिक्षा के नाम पर प्रयोग, नवाचार और काम करने की छूट थी और अब इनके
प्रवेश से सब "प्रोफेशनल" हो जाएगा और चंद टुकडों की खातिर सारे जमीनी
एनजीओ भी इनके इशारों पर नाचने लगेंगे और यही नहीं ये कारपोरेट राजस्थान,
गुजरात, उत्तरांचल के कई संस्थाओं और लोगों को निगल गया है क्योकि ये सिर्फ
मेनेज करना जानते है और कुछ नहीं. मुझे मप्र के शिक्षा परिदृश्य की बहुत
चिंता है क्योकि अब किसी माई के लाल के पास इतना रूपया नहीं होगा यहाँ तक
कि सरकार के पास भी नहीं, जो पहले ही अपना ईमान बेच बैठी है, कुछ उम्मीद
पुराने घाघ एनजीओ से थी पर अब क्या करे जाने माने पुराने एनजीओ तो टाटा
बिडला और बैंकों की कमाई पर परिवार पाल रहे है तो अब बचा क्या........बस
भूल जाओ सब और लाइन में खड़े रहो और उदघोषणा करो कि "सावधान होशियार
खबरदार दुनिया भर में पीटने पिटाने के बाद मप्र में शिक्षा का कबाडा करने
कारपोरेट आ रहे है..............कंप्यूटर की दुनिया में युवाओं का भयानक
शोषण कर अपना टेक्स बचाने के नाम पर उपरी जेब से निचली जेब में सी एस आर के
नाम पर रूपया भरकर दूकान चलाने वाले आ रहे है...........
किसी
भी काम में यदि समय सीमा तय हो जाती है तो नवाचार और काम करने की गुन्जाइश
खत्म हो जाती है ...............हालांकि यह भी भी महत्वपूर्ण बात है कि
डेड लाइन हमारे जिसे लोगों के लिए ही लाई गयी थी कि उठो कुछ करो
महाराज..........खासकरके शिक्षा में जब समय सीमा तय हो जाती है तो सब खत्म हो जाता है यहाँ तक कि शिक्षा शब्द के मायने भी ................
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