हम अपने कालातीत पंखों से
एक व्योम में झाँक रहे है खाली से
और समय हमारी गिरफ्त से बाहर है
यह समय को विदाई देने की बेला है
और निस्तेज होती देह को विराम.
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डा आंबेडकर सिर्फ संविधान तक ही सीमित रहते तो शायद आज उनका देश में कुछ और स्थान रहता। दूसरा संविधान सभा के बाकी सदस्यों के गुजर जाने के बाद वे शायद अकेले ही बचे थे जिन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की, इसलिए उन्हें सिर्फ संविधान तक ही सीमित रहना था। बहरहाल आज के विवादास्पद दिवस पर आंबेडकर को याद करना खानापूर्ति ना होकर सच्चे अर्थों में हम सहिष्णु लोकतांत्रिक बन पाएं तो अपने आपके ऊपर ही एहसान होगा बाकी सब तो जाए भाड़ में।
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ग्वालियर साईंस सेंटर के संस्थापक श्री अरुण भार्गव का ब्लड कैंसर की वजह से 5 दिसंबर को मात्र 67 वर्ष की उम्र में भोपाल में निधन हो गया।वे दो माह से गम्भीर बीमार थे और दिल्ली में भर्ती थे। तीन दिन पहले ही उन्हें भोपाल के बंसल अस्पताल में एम्बुलेंस से लाया गया था वेंटीलेटर पर। मेरी अभिन्न मित्र और संस्थान की अध्यक्ष सुश्री संध्या वर्मा ने अभी इस दुखद खबर के बारे में बताया। अरुण भार्गव से मेरा सन् 87 का परिचय था। मेपकॉस्ट के निर्माण में भी उनकी महती भूमिका थी। अरुण जी ने मप्र में विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए बहुत काम किया और बाल विज्ञान कांग्रेस को आम लोगों और बच्चों तक पहुंचाया। आख़िरी समय में वे बीमारी और परिवार से परेशान रहे, पर फिर भी वे लड़ते रहे सारे दुःखो के बावजूद। मेरी उनसे आख़िरी मुलाक़ात किशोरियों के स्वास्थ्य कार्यक्रम के दौरान देवास में हुई थी। इधर बहुत दिनों से मिलना तय था, पर दुर्योग कुछ ऐसे बने कि मैं ना मिल पाया। वे विज्ञान शिक्षा को लेकर साथ में कुछ करना चाहते थे और हमने बहुत सारी योजनाएं बनाई थी साथ काम करने की। प्रदेश में काम कर रही संस्थाओं से उनकी पटरी कभी बैठी नही, ग्वालियर से भोपाल आये थे तो उन्हें स्थापित होने में समय लगा फिर संध्या जैसे मित्रों ने उन्हें साथ दिया। इधर तीन चार वर्षों से उन्होंने संस्था की जिम्मेदारी सन्ध्या को सौंप दी थी और वे चिंतन मनन में व्यस्त रहते थे। यात्राएं कम कर दी थी पर इसके पहले उन्होंने देश के सुदूरवर्ती स्थानों पर बाल विज्ञान कांग्रेस के माध्यम से विज्ञान जैसे जटिल विषय को लोकप्रिय बनाया। शिक्षकों , युवाओ और बच्चों को साथ जोड़कर एक नया इतिहास रचा। NCSTC में डा नरेंद्र सहगल, मधु फुल्ल की टीम के साथ जनविज्ञान का महत्वपूर्ण कार्य किया।
यह दुखद संयोग ही है कि ख्यात वैज्ञानिक और शिक्षाविद् डा विनोद रायना की मृत्यु भी कैंसर से हुई थी और अरुण जी की भी। दोनों सुलझे हुए लोग थे हालांकि मत भिन्न थे दोनों के परन्तु दोनों के अवदान को आंकना मुश्किल होगा। मप्र ने विनोद भाई, डा अजय खरे, वसन्त शेंडे के बाद एक महत्वपूर्ण जन विज्ञानी खोया है जो प्रदेश के लिए बड़ा नुकसान है। एक बड़े आंदोलन से जुड़े लोगों का इस तरह से जाना निश्चित ही दुखद और पीड़ादायी है। विनोद भाई, अजय खरे, वसंत, या अरुण भार्गव जैसे सांगठनिक क्षमता वाले लोग बिरले ही पैदा होते है। यह मप्र में हम लोगों का सौभाग्य ही है कि हम इनके साथ कन्धे से कन्धा जोड़कर मिले थे, साथ सीखा, काम किया और अपनी समझ साफ़ की और आज जो भी है ऐसे साथियों की वजह से ही है। यह हमारे लिए कोई कम नही कि हमने इनके साथ इतिहास बनाया और लिखा है।
सन्ध्या ने बताया कि 28 की रात को दिल्ली से फोन करके उन्होंने कहा था कि साईंस सेंटर का काम आगे बढ़ाना और विज्ञान के लोकप्रियकरण का काम अधूरा नही रहना चाहिए। अब हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम प्रदेश में इस काम को आगे बढ़ाते रहे।
अरुण जी को श्रद्धांजलि और नमन।
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