पता है कि राजा नंगा है.
आजकल ठीक हूँ एकदम, आपने पूछा तो बताया
मुल्क कैसा है मेरा यह बताने की हिम्मत नहीं
रोज दो समय खाता हूँ भरपेट, आपने पूछा है
मुल्क क्या, क्यों और कैसे खाता है, पता नहीं.
स्वस्थ, तंदुरुस्त और ज़िंदा हूँ ठहाकों में अपने
बच्चों के मरने की खबर रोज आती हो, पता नहीं
छः सात जोड़ कपडे और कुछ गरम भी है
मुल्क में लोग ठण्ड से मर रहे होंगे, पता नहीं
माँ बाप का बनाया मकान है सो छत है
आसमान के नीचे होंगे या जंगल में, पता नहीं
थोड़ी सी आमदनी हो जाती है हर माह
कितनों ने रुपया देखा मुल्क में, पता नहीं
मै, मेरा घर मेरे लोग सुरक्षित है जान लीजिये
जिस्म बेचती औरतों का सुना, सही है क्या पता नहीं
मेरे यार दोस्त रिश्तेदारों के पेट भरे है, मजे में है
मुल्क में लोगों के लोग मर रहे है दहशत से, पता नहीं
रोज कुछ लिखता पढता हूँ ऐयाशी कह ले जनाब
तुम्हारे लोग इल्म की रोशनी से दूर होंगे, पता नहीं
रोज रात में चुपचाप जी भरकर रो लेता हूँ अक्सर
मुल्क में हर रोज लाखों लोग मेरे साथ रोते है, पता नहीं
मुझे राजा को नंगा कहना आता है क्योकि रोज कहता हूँ
तुम्हारे मुल्क के लोग इतनी हिम्मत जुटा पायेंगे, पता नहीं.
- संदीप नाईक
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अब समझ रहे है ना देश के वित्त की हालत क्यों महंगा हो रहा प्याज पेट्रोल सीमेंट और बाकी। यह फायदा किसको होता है समझ रहे है ना ?
हे प्रभु इस जेटली जो माफ़ मत करना ये सब जानता है कि इसने क्या किया है और क्या कर रहा है ।
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मप्र जन सन्देश में आज 20 दिसम्बर 15
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एक बात तो तय है प्रकाशकों ने लेखकों को बरगला फुसला कर अपना धंधा चालू कर दिया है। विश्व पुस्तक मेला भरा नही और .....😇😇😇😇🤗🤗🤗🤗🤗🤗 जिस अंदाज में लोग फेसबुक को किताबों का मार्केट बनाते है, पूरा धंधा चलाते है और बम्बई के रेसकोर्स की तरह लेखकों को घोड़ा बनाकर दौड़ाते है, आत्म प्रचार करते है भयानक किस्म से वह सब चकित करने वाला है मानो या ना मानो !!!! और इस पूरे जुएं में लेखक को किताबों की प्रतियां भी रूपये देकर खरीदनी पड़ती है और बातें विचारधारा प्रतिबद्धता और वामपंथ से लेकर दक्षिण पन्थ की करते है। काश कि इन किताबों से दुनिया बदलती तो क्या बात थी...
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News compect 20 Dec 15
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डर तो अभी भी लगता है अपनी ही परछाई से जो धूप में ज्यादा लम्बी, तल्ख और भयावह हो जाती है।
तुम्हारे लिए...........................सुन रहे हो ना ...............कहाँ हो तुम............
काफी दिनों जिया हूँ किसी दोस्त के बगैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो, खैर.
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो, खैर.
-फिराक.
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