समाज में पहले बराबरी लाईये फिर सजा अपराध की बात करिए
ज्योति सिंह का अपराधी छुट गया कल, अच्छा हुआ, आप व्यर्थ ही उसे दोष दे रहे है, दिक्कत हमारी व्यवस्था में है, क़ानून में है, जन प्रतिनिधियों में है , संसद में है जो विधायिका की भूमिका निभाती है .
मेरी नजर में उसे सुधरने का एक और मौका देना ही चाहिए, वरना वह जहां सजा पायेगा, आस पास के माहौल से वह ज्यादा खतरनाक होकर बाहर निकलेगा. साथ ही यदि उसे सजा दी गयी तो देश भर में अठारह से कम उम्र के बच्चों के भविष्य पर बड़ी आंच आ सकती है जो जाने अनजाने में अपराध कर बैठे है. सिर्फ एक बार सोच कर देखिये यदि आपका बच्चा होता तो क्या आप इस सजा की पैरवी करते?
और दूसरा अब जेंडर के जाल से बाहर निकलिए और समानता की बात करिए, उन बच्चियों के ओर ध्यान दीजिये जो मसाज पार्लर, देह व्यापार और वेश्या वृत्ति के धंधे में धकेल दी गयी है और उन्ही के अभिभावक और लोग कमा खा रहे है और शिक्षा के अभाव में ये लड़कियां रुपया कमाने के लिए हर हद तक जा रही है और जाने को तैयार है.
बुंदेलखंड, झाबुआ, आलीराजपुर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर और देश के दूसरे हिस्सों में मैंने देखा है कि पलायन में मजदूरी करने ईंट भट्टों पर या मेट्रो में या अन्य निर्माण कार्यों में जो नाबालिग लड़कियां जाती है दिल्ली, बम्बई, सूरत या कानपुर वो किस तरह से लौट कर आती है और उनके हाथों में महंगे मोबाईल से लेकर कीमती कपडे और गजेट्स होते है और वे गाँव में स्वाभाविक ईर्ष्या का कारण बन जाती है, वे गाँव में मुश्किल से एक महीना भी रहना नहीं चाहती और लौट जाना चाहती है उन्ही शहरों और काम धन्धों में.
थोड़ा गंभीरता से सोचिये और विचारिये, यह एक नाबालिग के जीवन का नहीं बल्कि देश भर के करोड़ों बच्चों का सवाल है जो हमारी आपके सामाजिक व्यवस्था और गलतियों से अपराधी बनते है और हम ही उन्हें शह देते है. कहना आसान है परन्तु निर्वहन कठिन है. ज्योति सिंह के साथ जो हुआ वह तो निंदनीय है ही, इसके लिए हमारी पूरी सामाजिक व्यवस्था दोषी है पर एक को सजा देकर हम सब बच नहीं सकते क्योकि महिला पुरुष में भेद भाव हमने बनाए है, क्यों गैर बराबरी है समाज में और क्यों इज्जत नामक चीज को सिर्फ एक महिला से जोड़ा जाता है? सोचिये और एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर कहिये कि मै निर्दोष हूँ.....यदि नहीं तो फिर सदियों से व्याप्त असमता और गैर बराबरी की सजा एक उस लडके को क्यों, क्या किसी ने यह प्रश्न किया कि तिहाड़ जैसी बड़ी जेल में बाकी दो अपराधियों ने आत्महत्या क्यों कर ली या मर गए? क्या हमारी सुरक्षा व्यवस्था की तगड़ी जेल भी इतनी ताकतवर नहीं कि दो जघन्य अपराधियों को बचा सकें.....?
थोड़ा सोचिये और यह बताईये कि क्या ज्योति सिंह के बलात्कार और ह्त्या के बाद दो माह से लेकर नब्बे साल की महिला तक के साथ बलात्कार होना बंद हो गए? क्या सब बालिगों कोर्ट में कन्विक्ट कर सजा दिला पाए है ? क्या मानसिकता में बदलाव आ गया है, यदि हाँ तो फिर उसे इंडिया गेट पर सार्वजनिक सजा दे दो, फांसी पर टांग दो और यदि नहीं तो फिर अपनी सड़ी गली व्यवस्था में बदलाव लाईये समाज को ज्ञान मत बांटिये.
-संदीप नाईक
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