Book on the table.
Thanks Dr (Prof) Linda Hess for this wonderful book.
एकलव्य में सन 1990 -91 में हम लोगों ने काम की शुरुआत की थी तो कबीर से और मालवा की कबीर मण्डलियों से सामना हुआ था और जमकर काम किया। शिक्षा साक्षरता का काम था पर दृष्टि कबीर से मिली काम की, समाज की, जाति और छुआछूत की और सबसे ज्यादा पाखण्ड की। बाद में इस काम से दुनियाभर के लोग जुड़े जिनमे से प्रोफ़ेसर लिंडा हैज़ महत्वपूर्ण साथिन थी। लिंडा ने अमेरिका के स्टेनफोर्ड में अध्यापन के साथ यहां कबीर पर शोध और दस्तावेजीकरण का कार्य जारी रखा। डा लिंडा ने कई किताबें आलेख और शोधपत्र लिखें, दुनियाभर में कबीर को बांटा और फैलाया।
पिछले दिनों डा लिंडा की इस महत्वपूर्ण कृति का विमोचन अमेरिका में हुआ और आदरणीय प्रो, (डा) Purushottam Agrawal जी वहाँ जा रहे थे तो मैंने लिंडा से अनुरोध किया था कि एक प्रति मुझे भेज दें। अभी लिंडा देवास में थी तो यह प्रति मेरे लिए भेंट स्वरूप दें गयी। अफ़सोस कि मैं मिल नही पाया। डा लिंडा ने वादा किया कि अब हम अगले साल मिलेंगे जब वो फिर आएंगी। हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत "कबीर", और डा पुरुषोत्तम अग्रवाल कृत "अकथ कहानी प्रेम की" के बाद शायद यह सबसे ज्यादा प्रामाणिक और शोधपरक ग्रन्थ होगा।
किताब में अपने मित्रों के फोटो और संस्मरण देखकर बहुत भावुक हो गया हूँ, खासकरके दिनेश शर्मा के, जो अब इस संसार में यह ग्रन्थ देखने को नही है। नारायण जी, कालूराम बामनिया, दयाराम, और बाकी सबको एक विश्वस्तरीय ग्रन्थ में देखना बेहद रोमांचकारी है. और मेरे समाज सेवा के गुरु रहे डा राम नारायण स्याग से लम्बी बातचीत भी कम नहीं है. आज पलट कर देखता हूँ तो लगता है जीवन में इतना सब किया अच्छा अछा और कर्म भूमि पर आन्दोलन, समझ और शिक्षा के काम में तल्लीन रहा तो आज यह ठहराव क्यों? पिछले सालों में स्थितियां बदल गयी है - न समाज में काम करने वाले लोग बचें, ना एनजीओ और ना काम का महत्व रहा, व्यवसायीकरण ने सबको तोड़कर रख दिया है. पर अभी भी मन है कि "सब कुछ छोड़कर जमीन पर आ जाऊं" .....क्योकि कबीर कहते थे ना - 'तू कहता कागद की लेखी, और मै कहता आंखन देखी..............'
आपसे जीवटता सीखी है लिंडा कैसे एक विदेशी भाषी होने के बाद भी आपने हिन्दी और मालवी भाषा सीखी गाँव - गाँवों में घूमी और अथक श्रम किया लोगों को इतना अपना कर लिया प्यार और काम से कि आज मालवा की कबीर मंडलियाँ आपको आने वाले हजार बरस नहीं भूल पाएंगी.
शुक्रिया लिंडा। आभार और ढेर सारी शुभकामनाएं आपके लिए।
एक साल के लिए दो पहिया , चार पहिया वाहनों की बिक्री और ऋण पर प्रतिबन्ध लगा दो। दूसरा आर टी ओ को नियंत्रित करने के पूरे अधिकार दो ताकि वे दस साल पुराने वाहनों, बसों, ट्रकों ट्रेक्टर और छोटे मोटे मैजिक टेम्पो आदि को सड़क पर बन्द करवा सकें।
सारा देश सिर्फ दिल्ली की बात कर रहा है मीडिया भी - पर देवास इंदौर धार भोपाल जोधपुर बांसवाड़ा बड़ौदा रोहतक से लेकर छोटे गाँव भी धूल धुएँ और प्रदूषण की गिरफ्त में है। कोई इन पर बोलेगा या सिर्फ दिल्ली ही सारी समस्या और वही के लिए हल खोजेगी सरकार।
इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण पर किसी माई के लाल में ताकत है बोलने की - अजान, मन्दिर और चर्च, गुरुद्वारों के सबद कीर्तनों पर ? सारे प्रशासकों के सरकारी आवासों पर भोंगे लगवाओ तब ससुरे समझेंगे कि कितना तकलीफ़देह है।
इन ससुरों को सबसे पहले "सिविल लाइन्स" से निकालो और किसी मोहल्ले में बसाओ तब सब समझेंगे ये जो कार्यपालिका के भृष्ट लोग है।
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