स्मार्ट सीटी में नगर निगम के अधिकारियो का कमीशन यानि हिस्सा कितना रहेगा हर समुदाय विकास के कार्यक्रम से लेकर ढांचागत विकास, निर्माण और टेंडरिंग में क्योकि अभी अमूमन कुछ ना करने पर आठ से बारह प्रतिशत होता है, बाकी स्मार्ट सीटी में दिखावे के लिए तो स्मार्ट काम करना पड़ेगा ही ना तो जाहिर स्मार्ट कमीशन बनाम हिस्सा भी होगा।
हम लोगों ने शिक्षा , स्वास्थ्य, आंगनवाड़ी और ग्राम विकास के गॉंवो में जाने वाले रुपयों में भ्र्ष्टाचार तो खोजते है पर शहरी इलाकों में गाँवों से ज्यादा खर्च होने वाली राशि को भारतीय प्रशासनिक और राज्य सेवा के अधिकारी मनमर्जी से खर्च करते है और भयानक रुपया खाते है।नगरीय निकायों में इस पर कोई बात नही करता।
स्मार्ट सीटी परियोजना में इस पर शुरू से ध्यान देने की जरूरत है और जनता के, खासकरके गरीब लोगों के लोकपाल को निगरानी के लिए रखने की जरूरत है।
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कल रेलवे ने 500 लोगों की बेशर्मी से बस्ती उजाड़ दी, तीन दिन पहले कांदिवली मुम्बई में पूरी झुग्गियां आग में स्वाहा हो गई। क्या खूब है स्मार्ट सीटी के लिए किये जाने वाले प्रयास। यानि नारकीय पीड़ा में रहने वाले लोगों को सुविधा या मूल सुविधाएं देने के बजाय सरकार प्रदत्त आग और विस्थापन के अलावा कुछ नही मिल रहा। स्मार्ट सीटी के नाम पर जिला प्रशासन , नगर निगम, एनजीओ और हवाई यात्राएं करने वाले तथाकथित दिल्ली के धंधेबाज कंसल्टेंट्स के जेब भरेंगे बाकी गरीब गुर्गे तो मरेंगे चाहे मुम्बई में या इंदौर की उजाड़ी जा रही बस्तियों में। एनजीओ बगैर काम किये फर्जी बिल बनाकर जेब भरेंगे। शर्मनाक है इस तरह से मेहनतकश अवाम को उजाड़ना, उनके आशियाने जलाना और मूल संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना।
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जो लोग खुद परेशान हो और जिनके पास सिर्फ कहानियाँ हो सुनाने को उनसे क्या बहस और क्या त्रस्त होना। छोडो बेकार की बातों को, कुछ तो लोग कहेंगे !!!
(सौमित्र से बातचीत के बाद)
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अच्छा ये बताओ आपमें और नेहरू जी में क्या फर्क है, जो देश के पहले प्रधान मंत्री थे ???जी, वे प्रधान मंत्री थे - मैं परिधान मंत्री हूँ, दूसरा उनके कपड़े विदेश धुलने जाते थे और वे देश में रहते थे - जबकि मैं विदेश में रहता हूँ और मेरे कपड़े देश में धुलने आते है।
वाह - वाह, क्या बात है !!! आपकी वाक् पटुता से शिंजो खुश हुआ और इसलिए आपको सड़े और खस्ताहाल स्टेशनों के देश में पटरी पर बैठकर मल विसर्जन करने वाले लोगों के लिए बुलेट ट्रेन में सहयोग का वादा करता हूँ।
सेक्रेटरी क्या डायलॉग था वो इंडियन फ़िल्म का, उसे बदलो और कहो कि "शिंजो खुश हुआ" !
चलो जापान वापिस ....
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Sandip Naik , @ copyright
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मप्र जनसंदेश में आज 13 दिसम्बर 15
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