भारत के उच्चतम न्यायालय में कुल छब्बीस जज साहेबान कार्यरत है हाल फिलहाल और उनमे से मात्र दो महिला जज है श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा और श्रीमती रंजना प्रकाश देसाई.
अब कहिये कि महिला मुद्दों को लेकर महिला जज होना चाहिए, हर थाने में महिला पुलिस होना चाहिए, हर अस्पताल में महिला डाक्टर होना चाहिए और देश में महिलाओं को बराबरी मिलना चाहिए. दरअसल में पंचायतों में कुछ दम नहीं है जो थोड़ा बहुत था वो सरकारों ने कबाडा करके बर्बाद कर दिया इसलिए वहाँ पचास प्रतिशत आरक्षण देने से कुछ भला बुरा होने वाला नहीं है. पर जहां निर्णय है, जहां रणनिती बननी है, जहां योजना बननी है, जहां पैरोकारी होनी है, जहां बिल पास होने है या क़ानून बनने है वहाँ महिलाए क्यों हो??? होगी बुद्धिमान तो होगी पढ़ी लिखी या विदुषी- हमारे ठेंगे से, रहे घर - ड्योढी में रहे, चूल्हा चौका सम्हाले और बच्चे पैदा करके सम्हालें उन्हें. इन ससुरियों को यहाँ-वहाँ लाकर कलह ही बढ़ाना है, इससे बेहतर है पंचायत आदि में आरक्षण देकर लालीपॉप पकड़ा दो, सारे महिला संगठन और वृंदा करात जैसे कामरेड शांत हो जायेंगे और फ़िर सारा जहां हमारा है ही.
वीणा वादिनी वर दे, प्रिय स्वतंत्र भारत में ...........
http://supremecourtofindia.nic.in/judges/judges.htm
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