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शिक्षा का क़ानून-एनजीओ, संस्थाएं और कार्पोरेट्स - मप्र में एक सवाल


मित्रों, शिक्षा का अधिकार क़ानून बन गया है सभी जगह इसे लागू  करने के भरसक प्रयास किये जा रहे है. नया सत्र चालू होने वाला है. शासन स्तर पर अतिरिक्त राशि जुटाकर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये निर्देशों के पालन हेतु भी राज्य दृढ संकल्पित है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारें स्कूलों में कई प्रावधान कर रही है. शिक्षकों की भर्ती में बीएड की अनिवार्यता की जा रही है, छोटे-मोटे निजी विद्यालयों पर भी इसके शिकंजे कसे जा रहे है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किये जा सके. जो शिक्षक शासन में प्रशिक्षित नहीं है उन्हें सरकार क्रम से प्रशिक्षित कर रही है, और यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले तीन वर्षों में पुराने सभी शिक्षक प्रशिक्षित हो जायेंगे.

इस पुरे परिदृश्य में जो छोटे-मोटे एनजीओ, संस्थाएं और बड़े कार्पोरेट्स शिक्षा में काम कर रहे है यानी सरकारों के साथ विद्यालयों में एमओयु साईन करके शिक्षक प्रशिक्षण से लेकर पाठ्यक्रम बनाना, इसे पाईलेट स्तर पर देखना-परखना, फ़िर लागू करवाना, मूल्यांकन, अनुश्रवण, कक्षा में बच्चो के साथ गतिविधियाँ करना, समुदाय को शिक्षा से जोड़ना, पालक शिक्षा संघ के लिए मदद करना, यानी कुल मिलाकर स्कूल में सीधे-सीधे घुसकर काम करना और बीएड, एमएड, डीएड के पाठ्यक्रम बनाकर जिले में , ब्लाक में व्यापक स्तर पर एवं पुरे राज्य स्तर पर  काम करना. जाहिर है इस सबमे योग्यता लगती है. खासकरके शिक्षा की बात करें तो कम से कम डीएड या बीएड होना वांछनीय ही नहीं आवश्यक भी है, और शिक्षा के बड़े कामों में एमफिल या पीएचडी की योग्यता क्योकि एनसीईआरटी, नीपा, या क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों में इसकी अनिवार्यता है. एक सीधा सा उदाहरण है यदि मै  एमबीबीएस डाक्टर को प्रशिक्षित कर रहा हूँ तो कम से कम मेरा एमएस या एमडी होना लाजमी है या कम से कम डाक्टरी की बेसिक डिग्री होना आवश्यक है. इस बात से आप सहमत होंगे.

दुर्भाग्य से मप्र में जहां से मै देख रहा हूँ शिक्षा में काम करने वाले अधिकाँश एनजीओ, संस्थाओं और कार्पोरेट्स के पास जो कार्यकर्ता है वे शिक्षा की कोई भी मान्यता प्राप्त डिग्री नहीं रख रहे है- कम से वे मूल डिग्रीयां जिन्हें शिक्षा का क़ानून मान्यता देता है. हाँ, काम करने वाले पंचायत राज, पानी प्रबंधन, खिलौने बनाने- बेचने, समाज कार्य, पत्रकारिता, प्रौढ़ शिक्षा, लेखन-पठन-पाठन, स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थय, जन आन्दोलनों, गैस त्रासदी, स्वच्छता अभियान, शहरी तंग बस्तियों में जन जागृति, ग्रामीण क्षेत्रों में जल-जंगल-जमीन, बाँध-जमीन हस्तांतरण, विस्थापन, कुपोषण, महिला सशक्तीकरण  आदि जैसे कार्यों में निष्णात जरुर है, पर क्या ये योग्यताएं "शिक्षाक्षेत्र"  में काम करने के लिए पर्याप्त है??? अगर यहाँ डिग्री की और पढाई की "शिक्षा के अधिकार के क़ानून" के दायरे में बात की जा रही है तो  छोटे-छोटे निजी विद्यालयों पर दबाव डाला जा रहा है, मान्यता बंद करने के प्रावधान किये जा रहे है, तो इन सारे एनजीओ, संस्थाओं और कार्पोरेट्स को भी किसी भी प्रकार की इंट्री स्कूल के दायरे में नहीं दी जाना चाहिए, जब तक कि वे शिक्षा के क़ानून के तहत यह मूल शर्तें पूरी नहीं करते.

मै इस पोस्ट को भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट को, मप्र के माननीय हाई कोर्ट को और मप्र शासन के शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, संचालक- राज्य शिक्षा केन्द्र, और भारत सरकार के सचिव- स्कूल शिक्षा, को इस अर्जी के (PIL- जनहित में याचिका) रूप में देकर पूछना चाहता हूँ कि मप्र में ऐसी कितनी संस्थाएं, एनजीओ एवं कार्पोरेट्स है जो शासन से मान्यता लेकर या स्थानीय शिक्षा विभागों से जुगाड या सम्बन्ध बनाकर स्कूल की परिधि में काम कर रहें है और इन संस्थाओं में काम करने वाले सभी कर्मचारियों. कार्यकर्ताओं की शैक्षिक योग्यता क्या है, साथ ही क्या ये शिक्षा के अधिकार क़ानून के तहत शिक्षा या स्कूल में काम करने की वांछनीय योग्यता रखते है ??? यदि हाँ, तो उन सबकी योग्यताओं के मूल दस्तावेजों की छाया प्रति मुझे उपलब्ध करवाएं, साथ ही मप्र राज्य शासन के साथ हुए एमओयु- जिसमे किये जाने वाले कार्यों का विवरण, पद्धति, कार्यकर्ताओं के नाम मय योग्यता, और बजट की छाया प्रति भी मुझे उपलब्ध करवाए.  यदि ऐसा कोई कानूनी दस्तावेज नहीं हो तो ऐसे सारे एनजीओ, संस्थाओं और कार्पोरेट्स को कम से कम स्कूल में या पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण के काम से दूर रखा जाये, और अवैधानिक रूप से काम कर भारतीय संविधान में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए बच्चों के अधिकारों से खिलवाड़ करने और उनका भविष्य बिगाडने के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाये. इसमे मै अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ और अन्य यु एन एजेंसियों को  भी इसी दायरे में लाने की मांग रखता हूँ जो पुरे प्रदेश में शिक्षा के लिए "कंसल्टेंट्स" की एक लंबी फौज रखता है और स्कूल में ज्यादातर मूल्यांकन और अनुश्रवण का कार्य करता है और बच्चों के मनोविज्ञान पर फोकस करता है. ये कंसल्टेंट्स बगैर शिक्षा की डिग्री लिए हुए यूनिसेफ का खौफ दिखाकर स्कूलों में घूस कर सिर्फ और सिर्फ आंकड़े भरते रहते है.

यह पत्र मै पृथक से सभी को भेज रहा हूँ. आप विद्वानों से निवेदन है कि अपने क्षेत्र में होने वाली ऐसी किसी भी गतिविधि की सूचना मुझे दे ताकि केस को मजबूत किया जा सके.

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