आज
के हिन्दी अखबार 'अमर उजाला' की हेडलाइन है : "मोदी ने मोहा युवा मन '
....इसके बाद बाइलाइन है : नौजवान बदलेंगे तकदीर। ऐसा उन्होंने 'श्री राम
कॉलेज आफ़ कॉमर्स' में कहा। लगता है देश के भावी 'नौजवान' दिल्ली के कामर्स
कालेज में ही पढ़ते हैं। देश भर के बेरोजगार छात्र, जो हर कदम पर भ्रष्टाचार
और अन्याय झेलते हैं, न वे अपनी तकदीर बदल पायेंगे , न देश की।
इसी अखबार के भगवा-पीले रंगीन बाक्स के कुछ वाक्य यों हैं :
1. तरक्की के लिए स्किल, स्पीड और स्केल ज़रूरी। (नैतिकता, इंसानियत, देशप्रेम, संवेदना आदि 'तरक्की' को रोक देंगे। )
2. उत्पाद की पैकेजिंग ज़रूरी। पैकेजिंग ने आयुर्वेद को बदला। (तो अब इसी तर्ज़ पर यज्ञ, योग आदि के लिए 'ग्लैमराइजेशन' ज़रूरी।)
.....
4. इस देश को अब कोई सपेरों का देश नहीं कह सकता। हमारे युवा 'माउस' से
दुनिया जीत रहे हैं। (तो फिर 'माउस' का उत्पादन जोरशोर से होना चाहिए। एक
पिद्दी से पड़ोसी को जीतने के लिए पोखरन में बम फोड़ने की क्या ज़रुरत?
हथियारों की ऐसी ताबड़तोड़ ख़रीद में अरबों-खरबों फूंकने की कौन सी समझ ? )
(बाकी का लिखा हुआ उड़ गया। नेट सर्वर के फेल होने से। अभी भारती कालेज जा रहा हूँ। लौट कर पूरा करूंगा।)
Sandip Naik
ji ....मुझे संदीप जी, एक बहुत मामूली लेखक और लगभग हर रोज़ कुआं खोद कर
पानी पीने वाले, भ्रष्टाचार, अन्याय और घृणित जातिवादी हिंदुत्व का शिकार
(इसमें दक्षिण-वाम-मध्य राजनीतिक धड़े सब सम्मिलित हैं) नागरिक होने के नाते
यह भी कहना है कि यह समझना किसी भी हिन्दुस्तानी या भारतीय या इंडियन के
लिए बिलकुल आसान है कि ऐसा क्यों हो रहा है कि उसी पार्टी का 'प्रधान'
महाकुंभ के मेले में इलाहाबाद (प्रयाग के संगम ) में डुबकी लगा रहा है, उसी
पार्टी का एक 'प्रोजेक्टेड प्रधानमंत्री' दिल्ली के 'कामर्स कालेज' कालेज
के युवाओं का 'मन मोह' रहा है और चन्दन-टीका- गेरुआ धारी तथाकथित 'संतों'
का 'रामवाण' चल रहा है। यह सब सत्ता को हथियाने का एक नियोजित 'फ़्राड' है।
एक रणनीति। यह सरासर चार सौ बीसी है। राम के साथ तो आदिवासी और दलित थे
जिन्होंने 'धन और ताकत' के दुर्दांत प्रतीक ब्राह्मण रावण के सोने की लंका
से धरती की कोख से जन्मी सीता को मुक्त कराया था और उस 'अहंकारी दैत्य' को
परास्त किया था । क्या मोदी के साथ आदिवासी और दलित और अन्य धर्मावलम्बी
हैं? एक नागरिक और लेखक होने के नाते मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि धर्म,
विकास और झूठ के घालमेल से पैदा होने वाली इस रणनीति से सावधान रहने की
ज़रुरत है। 'अमर उजाला' या तो बिक चुका है, या कट्टर धर्मांध, सवर्ण दिमाग
का नया औज़ार बन चुका है। ऐसे और भी हिन्दी के चैनल और अखबार होंगे। उन्हें
अब मैं पढ़ना जांचना शुरू करूंगा। (मेरे जैसे लोगों के पास कोई और ताकत
नहीं, कोई भी सत्ता नहीं, लेकिन जो कहना है, वह तो कहना ही है। इस सबके जो
भी 'राजनीतिक ' मायने निकलें , निकलते रहें। ) अभी भारती कालेज से लौट कर
आया और दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में गया। अब घर पर हूँ। सहजन की कढी
पकाई है। आलू- हरे चने की तरकारी है। अभी कुछ देर बाद खाना है और अपने
औलिया को याद करते हुए इस देश के सारे वाशिंदों , जिनमें मनुष्य ही नहीं,
और भी बहुत कुछ सम्मिलित हैं, उनकी चिंता करनी है। वे सब बचेंगे , तो शायद
हम भी बचें।)
ये भाई Uday Prakash जी का कमेन्ट है जब मैंने उनकी वाल पर लिखा था कि "फोर एफ - एफ मतलब फ्रस्ट्रेशन, एफ मतलब फेलुअर, एफ मतलब फ्राड, एफ मतलब फेक !!!"
यह
'मौक़ा' कहीं बहुत मंहगा न पड़ जाए ! जर्मनी में भी ऐसा ही 'एक मौक़ा' एक
बहुत 'शानदार लफ्फाज़ ', जो इतना असरदार था, कि पूरी जर्मन जनता उसके जादू
के वश में आ गयी थी। वह भी जर्मनी को संसार का सबसे अव्वल, सबसे शक्तिशाली
बना देने का सम्मोहक सपना दिखाता था और उसने (आप जानते होंगे ) 60 लाख से
अधिक 'विधर्मी यहूदियों' के अलावा, लेखकों, बुद्धिजीवियों, अपाहिजों,
विक्षिप्तों , अंधों, बच्चों, बूढों तक को जहरीले गैस चेम्बरों में डाल
दिया, क्योंकि वे 'जर्मन जाति' के दिग्विजयी 'विकास' में आड़े आ रहे थे।
.....अभी भी जो कुछ दिखाई दे रहा है, वह सचमुच डरावना है। आप शायद जो सपना
देख रहे हैं, वह एक सब्जबाग भी हो सकता है।
Uday Prakash
इसी अखबार के भगवा-पीले रंगीन बाक्स के कुछ वाक्य यों हैं :
1. तरक्की के लिए स्किल, स्पीड और स्केल ज़रूरी। (नैतिकता, इंसानियत, देशप्रेम, संवेदना आदि 'तरक्की' को रोक देंगे। )
2. उत्पाद की पैकेजिंग ज़रूरी। पैकेजिंग ने आयुर्वेद को बदला। (तो अब इसी तर्ज़ पर यज्ञ, योग आदि के लिए 'ग्लैमराइजेशन' ज़रूरी।)
.....
4. इस देश को अब कोई सपेरों का देश नहीं कह सकता। हमारे युवा 'माउस' से दुनिया जीत रहे हैं। (तो फिर 'माउस' का उत्पादन जोरशोर से होना चाहिए। एक पिद्दी से पड़ोसी को जीतने के लिए पोखरन में बम फोड़ने की क्या ज़रुरत? हथियारों की ऐसी ताबड़तोड़ ख़रीद में अरबों-खरबों फूंकने की कौन सी समझ ? )
(बाकी का लिखा हुआ उड़ गया। नेट सर्वर के फेल होने से। अभी भारती कालेज जा रहा हूँ। लौट कर पूरा करूंगा।)
Sandip Naik ji ....मुझे संदीप जी, एक बहुत मामूली लेखक और लगभग हर रोज़ कुआं खोद कर पानी पीने वाले, भ्रष्टाचार, अन्याय और घृणित जातिवादी हिंदुत्व का शिकार (इसमें दक्षिण-वाम-मध्य राजनीतिक धड़े सब सम्मिलित हैं) नागरिक होने के नाते यह भी कहना है कि यह समझना किसी भी हिन्दुस्तानी या भारतीय या इंडियन के लिए बिलकुल आसान है कि ऐसा क्यों हो रहा है कि उसी पार्टी का 'प्रधान' महाकुंभ के मेले में इलाहाबाद (प्रयाग के संगम ) में डुबकी लगा रहा है, उसी पार्टी का एक 'प्रोजेक्टेड प्रधानमंत्री' दिल्ली के 'कामर्स कालेज' कालेज के युवाओं का 'मन मोह' रहा है और चन्दन-टीका- गेरुआ धारी तथाकथित 'संतों' का 'रामवाण' चल रहा है। यह सब सत्ता को हथियाने का एक नियोजित 'फ़्राड' है। एक रणनीति। यह सरासर चार सौ बीसी है। राम के साथ तो आदिवासी और दलित थे जिन्होंने 'धन और ताकत' के दुर्दांत प्रतीक ब्राह्मण रावण के सोने की लंका से धरती की कोख से जन्मी सीता को मुक्त कराया था और उस 'अहंकारी दैत्य' को परास्त किया था । क्या मोदी के साथ आदिवासी और दलित और अन्य धर्मावलम्बी हैं? एक नागरिक और लेखक होने के नाते मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि धर्म, विकास और झूठ के घालमेल से पैदा होने वाली इस रणनीति से सावधान रहने की ज़रुरत है। 'अमर उजाला' या तो बिक चुका है, या कट्टर धर्मांध, सवर्ण दिमाग का नया औज़ार बन चुका है। ऐसे और भी हिन्दी के चैनल और अखबार होंगे। उन्हें अब मैं पढ़ना जांचना शुरू करूंगा। (मेरे जैसे लोगों के पास कोई और ताकत नहीं, कोई भी सत्ता नहीं, लेकिन जो कहना है, वह तो कहना ही है। इस सबके जो भी 'राजनीतिक ' मायने निकलें , निकलते रहें। ) अभी भारती कालेज से लौट कर आया और दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में गया। अब घर पर हूँ। सहजन की कढी पकाई है। आलू- हरे चने की तरकारी है। अभी कुछ देर बाद खाना है और अपने औलिया को याद करते हुए इस देश के सारे वाशिंदों , जिनमें मनुष्य ही नहीं, और भी बहुत कुछ सम्मिलित हैं, उनकी चिंता करनी है। वे सब बचेंगे , तो शायद हम भी बचें।)
ये भाई Uday Prakash जी का कमेन्ट है जब मैंने उनकी वाल पर लिखा था कि "फोर एफ - एफ मतलब फ्रस्ट्रेशन, एफ मतलब फेलुअर, एफ मतलब फ्राड, एफ मतलब फेक !!!"
यह
'मौक़ा' कहीं बहुत मंहगा न पड़ जाए ! जर्मनी में भी ऐसा ही 'एक मौक़ा' एक
बहुत 'शानदार लफ्फाज़ ', जो इतना असरदार था, कि पूरी जर्मन जनता उसके जादू
के वश में आ गयी थी। वह भी जर्मनी को संसार का सबसे अव्वल, सबसे शक्तिशाली
बना देने का सम्मोहक सपना दिखाता था और उसने (आप जानते होंगे ) 60 लाख से
अधिक 'विधर्मी यहूदियों' के अलावा, लेखकों, बुद्धिजीवियों, अपाहिजों,
विक्षिप्तों , अंधों, बच्चों, बूढों तक को जहरीले गैस चेम्बरों में डाल
दिया, क्योंकि वे 'जर्मन जाति' के दिग्विजयी 'विकास' में आड़े आ रहे थे।
.....अभी भी जो कुछ दिखाई दे रहा है, वह सचमुच डरावना है। आप शायद जो सपना
देख रहे हैं, वह एक सब्जबाग भी हो सकता है।
Uday Prakash
Uday Prakash
- Get link
- X
- Other Apps
Comments