यह तो हुआ ही नहीं था... सिर्फ तुम ही दोषी थे, वरना मै क्या..करती. तुमने कभी किसी से प्यार किया ही नहीं, तुम डरपोक हो, एक कावर्ड, पक्के डरपोक. कभी पलट के नहीं देखा मुझे और अब कहने से क्या होगा. इस बीच मुझे एक और छोटी बेटी हो गई है, बेटा तो था ही, सात मार्च को मै देर तक काम करती रही थी, फ़िर रात में डाक्टर को दिखाने गई तो उन्होने वही एडमिट कर लिया, ये थे नहीं दौरे पर थे आठ दिन के, तुम मुम्बई में थे फ़िर मै क्या करती ?? भर्ती हो गई, अगली सुबह यह बेटी पैदा हुई. दर्द तो हुआ था, पर, क्या बस खुशी यह थी कि एक बेटा था पहले से, और तुम आज यह सब प्रेम की बातें क्यों कर रहे हो, ज्यादा पी ली क्या? देखो तुम वैसे ही बीमार रहते हो- इतनी शुगर है, बीपी है और मै यह भी जानती हूँ कि तुम्हारी नौकरी छूट गई है. असल में वही बात है कि तुम डरपोक हो, एक भी जिम्मेदारी ठीक से कभी निभाई ही नहीं, हमेशा भागते रहते हो -अपने आपसे, नौकरी से, घर परिवार से और मुझसे भी भाग गये.....कितने साल मैंने तुम्हारा इंतज़ार किया, फ़िर शादी करना ही पडी, मै तो कभी नहीं भागी. सब किया और आज भी कर रही हूँ.........तुम्हारे पास मेरा मोबाईल नंबर नहीं है, क्या करोगे बात करके, सुनो अमरकंटक से कब आओगे और ज्यादा पीना मत, मै भले ही अब प्यार ना करती हूँ तुमसे, पर एक समय था जब सिर्फ तुम्हारे लिये ही जीती थी और याद है ना अपने जीवन के सबसे हसीं लम्हें हमने साथ बीताये है यहाँ-वहाँ घूमते हुए और खिलखिलाकर हँसते हुए. मै जानती हूँ कि तुमने इधर अपने आपको खत्म कर लिया है शराब पी-पीकर, मै तो तैयार थी तुमसे शादी करने को और पापा को भी राजी कर लिया था, पर क्या यह तुम्हारा कांशस डिसीजन नहीं था, आज तुम्हारे बारे में सुनती हूँ कि पिछले पच्चीस बरसों में हजारों नौकरियां छोड़ चुके हो, सब जगह झगडते रहते हो, यहाँ भी देखती हूँ कि तुम्हें देश-जहां की चिंता है, समाज की चिंता है, पर ना अपनी चिंता है- ना मेरी.....बस यूँही घुट-घुटकर मै तो निकाल ही लूंगी जीवन पर तुम्हारा क्या..........हाँ, सही कह रहे हो- आत्महत्या कर लोगे....कर लो, मुझे कोई फर्क नहीं पडेगा तुम्हारी मौत से क्योकि मै तो वैसे ही मर चुकी हूँ इस जीवन में तुम्हारे बगैर, पर मेरी बात सच हो जायेगी कि तुम डरपोक हो और आख़िर में जीवन से भी पलायन करके भाग गये......देखो अब कुछ हो नहीं सकता, ना तुम मेरे, ना मै तुम्हारी, पर जीवन तो काटना ही पडेगा ना. सुनो साधू सन्यासियों के चक्कर में ज्यादा मत पीना, नहीं तो हमेशा की तरह रात भर पीते रहोगे फ़िर खून की उल्टियां, अस्पताल और फ़िर एक बार संसार में लाने की नाकाम कोशिशें, कितना तडफाओगे मुझे जीते जी तुम, ........कब आ रहे हो भोपाल, मुझसे मिल लो एक बार, बड़ा मन है तुमसे एक बार मिलने का.......मै अक्सर नदी को देखती हूँ सेठानी घाट से रेतघाट से और फ़िर लगता है कि यह नदी कहाँ जाकर बहना बंद करेगी, अच्छा रख रही हूँ.........कल वेलेंटाईन दिवस है ना........याद करोगे मुझे...वो तो है नहीं यहाँ, दौरे पर है काश कि तुम मेरे पास होते.......ओह वैष्णवी रो रही है उसे दूध पिलाने का समय हो रहा है.....तुम ज्यादा पीना मत और सुबह इसी नंबर पर बात कर लेना......सुनो......फोन मत काटो पूरी बात तो सुन लो..सुनो..सुनो......सुनो...(नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथा)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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