Skip to main content

राजघाट पर बुश का कुत्ता छी छी छी- यश मालवीय

राजघाट पर बुश का कुत्ता छी छी छी
किसके हाथ तुरुप का पत्ता छी छी छी
राजघाट पर बुश का कुत्ता छी छी छी
गांधी जी की रूह रो रही सूने में
अपने तन का खून धो रही सूने में
मनमोहन ने टेका माथा छी छी छी
तुम ही माई बाप, सभी ने गाया है
नरमुंडों की माला पहने आया है
उसकी कुर्सी, उसका हत्था छी छी छी
इसको उसको सूंघ रहा सन्नाटे में
सरकारी पूंजी है सैर सपाटे में
कड़ुआ हुआ शहद का छत्ता छी छी छी
ऐश महल में, अर्थ व्यवस्था घाटे में
आँसू भड़ी गरीबी गीले आटे में
उसकी पौबाड़ा अलबत्ता छी छी छी
होली पर हल्की सर्दी है, गर्मी है
बातचीत में देखो कैसी नरमी है
पोछे नहीं पसीना सत्ता छी छी छी
भरी सुबह रोशनी हुई चितकबरी है
धड़ से अलग अहिंसा वाली बकरी है
धूप के सिर पे छांव चकत्ता छी छी छी
जनगणमन की सुबह कहो क्या शाम कहो
बजट बीच मेहमानवाजी राम कहो
बिना बात का बोनस भत्ता छी छी छी
सच्चाई के सिर पर भारी बक्सा है
मंहगे होटल में भारत का नक्सा है
राशन पानी कपड़ा लत्ता छी छी छी
अपनी कोई शक्ल नहीं आइने में
आग नहीं बस धुआँ भरा है सीने में
संविधान कागज का गत्ता छी छी छी

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...