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एक दिन ड़ा दिनेश कुशवाह और ड़ा प्रहलाद अग्रवाल जी के साथ रीवा में






यह ३० नवंबर की दोपहरी थी जब मैंने प्रिय मित्र, सखा और बंधू ड़ा दिनेश कुशवाह को रीवा में फोन किया और पूछा कि क्या वो रीवा में है तो बोले अरे जहां भी हो तुरंत चले आओ यहाँ ड़ा प्रहलाद अग्रवाल जी भी आये हुए है जिन्हें दिनेश प्यार से आचार्य कहता है, मै वेद के साथ भागा और जा पहुंचा विवि में हिन्दी विभाग जहां मै दर्जनों बार आया हूँ. दिनेश ने बहुत गर्मजोशी से गले लगाकर स्वागत किया और आचार्य जी से परिचय करवाया. बाद में अपनी एक कविता मेरे लिए एवं आचार्य जी के लिए पढ़ी "बडबोले" बहुत ही अदभुत कविता ढेरों सन्दर्भ, प्रसंग और मौजूदा हालात पर कचोट करने वाली बेहतरीन कविता. फ़िर गपशप, और अपनी पुस्तक "इसी काया में मोक्ष" दी, साथ ही जनपथ का ताजा अंक, और "अभिनव कदम" के भाग २७/२८ जो किसान आंदोलन पर केंद्रित थे. दो घंटे तक बहस, साहित्यिक गपशप और फ़िर गर्मागर्म पकौड़े और चाय वाह..........हाँ आचार्य जी के सुपुत्र जिन्होंने दिनेश के साथ ही हाल ही में पीएचडी पूरी की ड़ा उज्जवल अग्रवाल से मिलवाया. उज्जवल की भारतीय ज्ञानपीठ से हाल में किताब भी आई है. कितना कुछ हो जाता है चंद घंटों में हम सोच ही नहीं पाते............फ़िर बाहर आकर चंद तस्वीरें खिचवाई हम सबने और फ़िर विदाई.........इस बीच समीरा नईम से फोन पर बातें की और फ़िर दोनों ने वादा किया कि वे शीघ्र ही देवास आने का कार्यक्रम बनाएंगे .ऐसे मौके बहुत कम आते है जीवन में मेरे लिए ये यादगार भावुक क्षण थे जिन्हें मै हमेशा सहेजकर रखना चाहूँगा.

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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