यूँ
तो सन १९९४ में वो देश छोड़कर चला गया था, वही शादी कर ली थी, तीन बच्चे हो
गये थे और आज वो अमेरिका का जाना माना डाक्टर है. लगभग एक साल पहले मेरे
ब्लॉग पर एक अनजान आदमी के कमेंट हर लिखे पर आ जाते थे और मुझे घोर आश्चर्य
होता कि यह कौन है जो पहचान नहीं बता रहा और मेरे बारे में इतना जानता है
और वो बातें जो मेरी किशोरावस्था से सम्बंधित थी, स्कूल, कॉलेज से
सम्बन्धित थी, और हर लिखे पर कमेन्ट आता था. पहले मैंने जिज्ञासा वश ध्यान
दिया फ़िर जवाब ना मिलने पर छोड़ दिया कि होगा कोई. पर एक दिन इसी फेस बुक
पर दोस्ती का एक सुकून भरा आमंत्रण आया और यह राकेश निकला. फ़िर तो बातों का
सिलसिला चल निकला और आनन-फानन में उसने यहाँ, देवास, आने का कार्यक्रम बना
लिया. तीन माह पूर्व उसने सब तय कर लिया था, मैंने भी उसके वापिस जाने का
टिकिट बनवा दिया था. जैसे-जैसे दिन करीब आते गये वो रोज पूछता सब तय है ना,
तुने छुट्टी ले ली है ना, सबको बता दिया है ना, ठण्ड कितनी है आदि आदि. और
आखिर वो दिन आ ही गया जब वो इंदौर उतरा और देवास आ गया शाम को १६ की. खूब
बातें पुराने दोस्तों से जो देवास में ही
है पर मै मिल नहीं पाया इनसे. कभी देर रात तक सबके घरों में जाना, इनकी
बीबीयों से, बच्चों से जो अब किशोरावस्था पार कर कॉलेज में जाने लगे है,
दोस्तों के माता-पिता जो बुढापे के दर पर है, और पुरानी मधुर स्मृतियाँ और
सबसे ज्यादा तुम, आप छोड़कर साले कमीने, कुत्ते, तू-तुकारे से बोलने का सहज
माहौल फ़िर लौट आया था और साथ पढ़ी-लिखी लडकियों, उनके घर, दुनियादारी,
प्लाट, जमीन जायदाद, बच्चों का कैरियर, सपने, उमंगें, हमारे मास्टर और उनके
बच्चे और उनकी धरोहर, देश-प्रदेश और अमेरिका, बराक ओबामा और वहाँ यहाँ की
राजनीति कितनी सारे बातें हुई है इन तीन दिनों में. अभी राकेश को विदा कर
लौटा हूँ भारी मन से. इस बीच सुवीर, विजय, अजय, डा रफत कुरेशी से प्रत्यक्ष
मुलाक़ात और आशीष केकरे और शेखर सोनी से फोन पर लंबी-लंबी बातें हुई है इन
दिनों, लगा कि बचपन और कैशौर्य लौट आया है बेफिक्री और मदमस्त दिन पुनः लौट
आते है अक्सर पुराने दोस्त मिलने पर, काश!!! ये रुक सकते हमेशा के लिए पर
कहाँ हो पाता है सब कुछ सोचा हुआ, राकेश ने वादा किया है कि कम से कम वो हर
पांच साल में तो एक बार हम सबसे मिलने आएगा ही और अगली बार उसकी
पत्नी-रानी , बेटे जुबीन, निखिल और बेटी परी के साथ निश्चित ही आएगा. उससे
हमने गंभीरता से पूछा कि क्या चक्कर है तो बोला, जो बहुत ही मार्मिक था-
"मैंने इन दिनों वहाँ अपने व्यस्त समय में से समय निकाल कर दो फ़िल्में
देखी :थ्री इडियट और ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा"- बस ये तो फ़िल्में थी मै
इन्हें जीवन में अपनाने को चला आया. पता नहीं पांच साल बाद क्या हो, कौन
मिले, कौन ना मिले.......इन दो फिल्मों ने मेरे अंदर उथल-पुथल मचा दी थी
मै देवास का सयाजी द्वार देखना चाहता था, मीठा तालाब, खारी बावडी, एमजी रोड
और वो सब देखना चाहता था जो उन दिनों मैंने शिद्दत से जिया था, देवास मेरे
अंदर आज भी धडकता है शहर कभी मरा नहीं करते, वे भले ही कितने बदल जाये पर
हमारे अंदर बसा हुआ शहर, प्यार और लोग मरा नहीं करते........बस यही प्यार
था, सबसे मिलने की बेताबी थी जो यहाँ खींच लाई.......अब पांच सालों बाद
लौटूंगा पता नहीं क्या बदलेगा पर......एक बार मिलना है, एक दिन और रुकना है
और एक जीवन और जीना है .......क्योकि ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा.......!!!
यूँ
तो सन १९९४ में वो देश छोड़कर चला गया था, वही शादी कर ली थी, तीन बच्चे हो
गये थे और आज वो अमेरिका का जाना माना डाक्टर है. लगभग एक साल पहले मेरे
ब्लॉग पर एक अनजान आदमी के कमेंट हर लिखे पर आ जाते थे और मुझे घोर आश्चर्य
होता कि यह कौन है जो पहचान नहीं बता रहा और मेरे बारे में इतना जानता है
और वो बातें जो मेरी किशोरावस्था से सम्बंधित थी, स्कूल, कॉलेज से
सम्बन्धित थी, और हर लिखे पर कमेन्ट आता था. पहले मैंने जिज्ञासा वश ध्यान
दिया फ़िर जवाब ना मिलने पर छोड़ दिया कि होगा कोई. पर एक दिन इसी फेस बुक
पर दोस्ती का एक सुकून भरा आमंत्रण आया और यह राकेश निकला. फ़िर तो बातों का
सिलसिला चल निकला और आनन-फानन में उसने यहाँ, देवास, आने का कार्यक्रम बना
लिया. तीन माह पूर्व उसने सब तय कर लिया था, मैंने भी उसके वापिस जाने का
टिकिट बनवा दिया था. जैसे-जैसे दिन करीब आते गये वो रोज पूछता सब तय है ना,
तुने छुट्टी ले ली है ना, सबको बता दिया है ना, ठण्ड कितनी है आदि आदि. और
आखिर वो दिन आ ही गया जब वो इंदौर उतरा और देवास आ गया शाम को १६ की. खूब
बातें पुराने दोस्तों से जो देवास में ही
है पर मै मिल नहीं पाया इनसे. कभी देर रात तक सबके घरों में जाना, इनकी
बीबीयों से, बच्चों से जो अब किशोरावस्था पार कर कॉलेज में जाने लगे है,
दोस्तों के माता-पिता जो बुढापे के दर पर है, और पुरानी मधुर स्मृतियाँ और
सबसे ज्यादा तुम, आप छोड़कर साले कमीने, कुत्ते, तू-तुकारे से बोलने का सहज
माहौल फ़िर लौट आया था और साथ पढ़ी-लिखी लडकियों, उनके घर, दुनियादारी,
प्लाट, जमीन जायदाद, बच्चों का कैरियर, सपने, उमंगें, हमारे मास्टर और उनके
बच्चे और उनकी धरोहर, देश-प्रदेश और अमेरिका, बराक ओबामा और वहाँ यहाँ की
राजनीति कितनी सारे बातें हुई है इन तीन दिनों में. अभी राकेश को विदा कर
लौटा हूँ भारी मन से. इस बीच सुवीर, विजय, अजय, डा रफत कुरेशी से प्रत्यक्ष
मुलाक़ात और आशीष केकरे और शेखर सोनी से फोन पर लंबी-लंबी बातें हुई है इन
दिनों, लगा कि बचपन और कैशौर्य लौट आया है बेफिक्री और मदमस्त दिन पुनः लौट
आते है अक्सर पुराने दोस्त मिलने पर, काश!!! ये रुक सकते हमेशा के लिए पर
कहाँ हो पाता है सब कुछ सोचा हुआ, राकेश ने वादा किया है कि कम से कम वो हर
पांच साल में तो एक बार हम सबसे मिलने आएगा ही और अगली बार उसकी
पत्नी-रानी , बेटे जुबीन, निखिल और बेटी परी के साथ निश्चित ही आएगा. उससे
हमने गंभीरता से पूछा कि क्या चक्कर है तो बोला, जो बहुत ही मार्मिक था-
"मैंने इन दिनों वहाँ अपने व्यस्त समय में से समय निकाल कर दो फ़िल्में देखी :थ्री इडियट और ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा"- बस ये तो फ़िल्में थी मै इन्हें जीवन में अपनाने को चला आया. पता नहीं पांच साल बाद क्या हो, कौन मिले, कौन ना मिले.......इन दो फिल्मों ने मेरे अंदर उथल-पुथल मचा दी थी मै देवास का सयाजी द्वार देखना चाहता था, मीठा तालाब, खारी बावडी, एमजी रोड और वो सब देखना चाहता था जो उन दिनों मैंने शिद्दत से जिया था, देवास मेरे अंदर आज भी धडकता है शहर कभी मरा नहीं करते, वे भले ही कितने बदल जाये पर हमारे अंदर बसा हुआ शहर, प्यार और लोग मरा नहीं करते........बस यही प्यार था, सबसे मिलने की बेताबी थी जो यहाँ खींच लाई.......अब पांच सालों बाद लौटूंगा पता नहीं क्या बदलेगा पर......एक बार मिलना है, एक दिन और रुकना है और एक जीवन और जीना है .......क्योकि ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा.......!!!
"मैंने इन दिनों वहाँ अपने व्यस्त समय में से समय निकाल कर दो फ़िल्में देखी :थ्री इडियट और ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा"- बस ये तो फ़िल्में थी मै इन्हें जीवन में अपनाने को चला आया. पता नहीं पांच साल बाद क्या हो, कौन मिले, कौन ना मिले.......इन दो फिल्मों ने मेरे अंदर उथल-पुथल मचा दी थी मै देवास का सयाजी द्वार देखना चाहता था, मीठा तालाब, खारी बावडी, एमजी रोड और वो सब देखना चाहता था जो उन दिनों मैंने शिद्दत से जिया था, देवास मेरे अंदर आज भी धडकता है शहर कभी मरा नहीं करते, वे भले ही कितने बदल जाये पर हमारे अंदर बसा हुआ शहर, प्यार और लोग मरा नहीं करते........बस यही प्यार था, सबसे मिलने की बेताबी थी जो यहाँ खींच लाई.......अब पांच सालों बाद लौटूंगा पता नहीं क्या बदलेगा पर......एक बार मिलना है, एक दिन और रुकना है और एक जीवन और जीना है .......क्योकि ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा.......!!!
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