दोस्ती, यारी, संगीत, साहित्य और जिंदगी कितनी हसीन हो सकती है यह शब्दों में बता पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है कई बार. देवास में हम लोग इस मामले में बहुत सुखी है और इस बात पर हमें गर्व भी है. कल प्रसंगवश बहादुर पटेल का जन्मदिन था और हमारे जीवन काका यानी श्री जीवनसिंह ठाकुर की नई किताब जो पाकिस्तान पर लिखे गये उनके लेखों का संग्रह है भी राधा प्रकाशन, नई दिल्ली से आई है. हम सब लोग आदरणीय डा प्रकाश कान्त जी के यहाँ एकत्रित हुए और फ़िर क्या बात थी, एक शाम कब रात में ढल गई, ताई संजीवनी का अपनत्व, अमेय और पारुल और श्रीकान्त का स्नेह और मेजबानी , और देवास भर के साथी मोहन वर्मा, ओम वर्मा, समीरा नईम, दीक्षा दुबे, विजय श्रीवास्तव, जीतेंद्र चौहान(इंदौर) केदार, रितेश जोशी, संजय मालवीय, कैलाश राजपूत, रेखा भाभी, कृष्णा, कविता और बहादुर के परिजन, मेहरबान सिंह, सुनील चतुर्वेदी, अभिषेक और ढेर साथी इस महत्वपूर्ण आयोजन में शामिल थे.
जीवन काका ने अपनी किताब के बारे में बताया और अपनी सारगर्भित टिप्पणी से भारत पाक मुद्दों को लेकर समझ स्पष्ट की. बाद में बहादुर ने अपनी नई ग्यारह कवितायें पढ़ी. इस आयोजन में देवास के वरिष्ठ साहित्यकार डा ओम प्रभाकर जी ने जीवन काका, डा प्रकाश कान्त और बहादुर को शाल ओढाकर सम्मानित किया. यह सबसे सुखद था कि इस निहायत पारिवारिक आयोजन में सब शामिल थे. बाद में साहित्य पर चर्चा हुई.
फ़िर देर रात तक हम ओम प्रभाकर जी से साहित्य और पुराने किस्से सुनते रहे, रात दो बजे उनके घर पर आदरणीय इंदु जी ने हमें मिठाई खिलाए और आंवले के लड्डू खिलाए जो इतने बढ़िया थे कि बता नहीं सकता. ढेरों किस्से-कहानियां और किस्सागोई के माहिर ओम जी ने हमें रचनाकारों और उनकी रचना प्रक्रिया से जुडी कई बातें बताई. यह दिन इस मायने में यादगार था कि एक दोस्त का जन्मदिन कितना सार्थक हो सकता है और जब अपने सब लोग मिलकर इसे रचनात्मक ढंग से मनाते है तो यह अविस्मरणीय हो जाता है. इस अवसर पर बहादुर के परिजन शामिल थे यह भी बड़ी खुशी की बात थी. कब समय गुजर गया पता ही नहीं चला. यह सब इतना भावुक और सुकून देने वाला था कि लगता था समय यही ठहर जाये.
संजीवनी ताई के एक होनहार शिष्य ने कार्यक्रम के आरम्भ में एक मालवी गीत और गजल गाकर इसे बहुत ही रसिक और संगीतमयी बना दिया था. आयोजन में संयोजन सुनील भाई का ना होता तो शायद यह इतना महत्वपूर्ण ना बन पाता, सो वे निश्चित ही धन्यवाद के पात्र है, और ओम प्रभाकर जी के लाडले केदार के बिना तो यह हो ही नहीं सकता था. बकौल सुनील भाई के "मै और संदीप तो उनके सौतेले पुत्र है और बहादुर और केदार सगे वाले है".....हा हा हा, ओम प्रभाकर जी का भी धन्यवाद कि इतनी देर रात तक हम लोगों के साथ रहे. जब घर पहुंचे रात दो बजे तो आदरणीय इंदु जी ने हम सबसे पूछा कि एक बूढ़े ने चार जवानों को चलाया कि चार जवानों ने एक बूढ़े को चलाया?? शायद इतना खुलापन, ममत्व और सहजपन कही देखने को मिलेगा नहीं, वे सचमुच माँ है हम जैसे बिगडेल बच्चों की.
इस अवसर पर हमने अपने परिवार के सदस्य आदरणीय पदमश्री वसुंधरा ताई, कलापिनी कोमकली, सुल्ताना नईम दीदी, प्रभु जोशी, भगवान सिंह मालवीय, मनीष वैद्य, पुष्पेन्द्र वैद्य, सत्यनारायण पटेल, दिनेश पटेल, ब्रजेश कानूनगो और इंदौर के साथियों को भी बहुत "मिस" किया जो इसमे शरीक नहीं हो पायें.
लंबी रचनात्मक उम्र जियो बहादुर और यश कीर्ति की पताकाएं फहराते रहो.
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