ये
है रामसखी ..............ग्यारह साल की पचास रुपये रोज मिलते है और पांच
से छः घंटे तक सर पर बोझा उठाकर चलती है गालियाँ खाती है सो
अलग............बरात जनवासे पहुँच जाती है तो लोग दुत्कार देते है रास्ते
भर पानी नहीं पीती और आख़िरी में में एक कप चाय की उम्मीद में बैठी रहती है
बरात के दरवाजे पर कि कोई एक कप चाय पिला देगा या कुछ खाना खिला
देगा..............स्कूल....... .अरे
वो तो बड़े लोग जाते है हमें क्या ...........हाँ कभी कभी ठेकेदार दस पांच
रूपया दे देता है तो फुल्की खा लेती है चटपटी अब अंदर जाकर पार्टी में नहीं
खा सकते ना साहब........पचास रूपये..... बाबू ले लेते है कभी घर का सामान
ले आते है और कभी पौवा ...........साहब अगर बरात चलते में लाईट बूझ गई
तो बाराती के साथ ठेकेदार भी बहुत गाली देता है माँ-बहन की, और फ़िर आठ दिन
तक काम पर नहीं बुलाता तो घर में बाप-माँ भी गाली देते है भाई भी मारता है
खूब, अब मै क्या करू मै कोई कारीगर नहीं और फ़िर वजन से सर दुखता है....
इन दिनों तो बहुत ठण्ड है साहब.... गरम सूटर भी नहीं है और बाराती देर तक
नाच-गाना करते है और बड़े लोग बैंड वालों को, ढोल वालों को, बग्घी वाले को,
घोड़े वाले इनाम देते है पर हमें तो चाय भी नहीं मिलती..........क्या करे
साहब.............गरीबी बड़ी बुरी चीज है आप सब भी जानते है पर करते कुछ
नहीं ना यही.............तो दिक्कत है
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