जिधर जाते है सब, जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल* रास्तों का सफर अच्छा नहीं लगता
गलत बातों को खामोशी से सूनना, हामी भर लेना
बहुत फायदे है इसमे मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, कदमों में अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की खुशबू तक नहीं आती
ये वो शाखें है जिनको अब शजर** अच्छा नहीं लगता
ये क्यों बाकी रहे आतिश-जनों***, ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता .
-जावेद अख्तर
*पामाल- घिसे-पिटे
**शजर- वृक्ष
***आतिश-जनों- आग लगाने वाले
Comments