बहुत छोटी सी पीपल के एक कोमल पत्ती मेरे यहाँ तेज हवा में बहाकर आ गयी मैंने उससे पूछा किसने छोड़ा तुझे पीपल ने या तू ही मुक्त होकर आ गयी या तेज हवा ने उड़ा दिया तुझे या वो नाजुक सा बंधन ही कमजोर निकला जो तुझे जोडने के लिए बनाया गया था, पत्ती मुस्कुराते हुए बोली अब क्या सोचना जब टूट ही गयी हूँ तो अब तो मुक्त हूँ बस यही से बहना है अगर रुक गयी तो सड जाउंगी और फ़िर बहना भी तो एक दिशा ही है, जुडे रहने से तो मोह बढता है मुक्त होना ही जीवन है(मन की गांठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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